विद्याष्टकम् | Vidyashtakam

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Vidhastakam  by प्रदीप कटपीस - pradeep katpees

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| विद्याष्टकम्‌ कल है- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज | सस्कृत व हिन्दी मे अनेक स्वतन्त्र कृतियो के रचयिता एवं अनेक प्राचीन प्राकृत-सस्कृत रचनाओ के मौलिक-अनुवादक,तपोनिधि आचार्य विद्यासागरजी भारतीय ऋषि-मुनियो की उसी सतत द्युतिमान-आकाश गड्ढ़ा के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र है | वे नेष्ठिक दिगम्बर मुनि आचार के साक्षात्‌ आदर्श है | अपने स्वर्गीय गुरुवर आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज के सत्यपूत तत्त्वज्ञ शिष्य है | और मोक्षगामी धर्मरथ के अश्वकी वल्गा को धारण करने वाले वास्तविक सारथी है । बालपने मे पूर्वसस्कारजन्य वैराग्यभावना से प्रेरित आचार्य विद्या सागरजी महाराज ने गुरुमुख से प्राप्त जैन तत्वज्ञान को अपनी असाधारण प्रज्ञा से श्रुत-महोदधि मे गहरी इुबकी लगाकर आत्मसात्‌ किया । तप, स्वाध्याय ओर ध्यान के त्रिविध उत्स मे से विद्या के सागर आचार्यप्रवर की सवेदनशीन मेधा नित-नूतन अध्यात्म ओर भक्तिश्रवण काव्यसरित्‌ प्रवाह के रूप मे बह निकली ओर निरन्तर नये-नये स्तोत्रो, शतको के रूप मे वर्धमान होती रही । कुन्दकुन्दादि प्राचीन आचार्यो के मूल प्राप्त आगम ग्रन्थो के सुमधुर छन्दोबद्ध॒हिन्दी पद्य-रूपान्तर, सस्कृत मे स्वरचित भक्ति, वैराग्य एव अध्यात्ममय शतक तथा उन शतको के स्वरचित हिन्दी भावानुवाद उनकी उसी काव्यसरित्‌ के अगीभूत स्तोत्र टै । गुरु स्तुत्य टै । स्तुतिकर्ता केवल स्तवन करके हटनेवाले सासारिक जीव नहीरहै। वे स्वय परिग्रह से मुक्त सन्यासी है । इस साधुत्व के साथ एक ओर चमत्कारी गण उन्हे प्राप्त है- वह है कवित्व । वे कवि के रूप मे जपने जाराध्य गुरु आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की स्तुति चित्र-काव्य के द्वारा कर रहे है जिसका शीर्षक है- 'विद्याष्टकम्‌' । यह रचना संस्कृत मे ই | अनेकार्थ- विधा से सम्पन्न है । इसलिए साधुत्व ओर कवित्व शक्ति के साथ-साथ विद्वता के भी दर्शन इस काव्य मे होते है । इस प्रकार के चित्रकाव्य की रचना आजकन नही होती है । इसे रचना कौशल कहे या प्रतिभाविलास जो एक सनन्‍्यासी के मन मे भी उदित होता है | इसका अर्थ यह हुआ कि लौकिक काम क्रोधादि भावो का उदात्तीकरण होने के कारण ही एक सन्यासी भी काव्य-चमत्कार के माध्यम से रसान्वित हो सकता है | रस इस अर्थ मे भी ब्रह्मानन्द सहोदर है । कई सन्तो ओर योगियो ने काव्य की रचना की है। ज्ञानेश्वर, नामदेव, कबीर, तुलसी, सूर, रामदास, तुकाराम, कम्ब,




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