भारतीय-आर्य भाषा और हिन्दी (1954) | Bharatiya Ary Bhasha Aur Hindi (1954)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विभिन भाषा-कुल १७ को यह सूभ सबसे पहले कलकत्त में १८वीं शताब्दी में ही संस्कृत का भ्रध्ययन करते समय आई थी। संस्कृत भाषा के विषय में उनका उत्साह बढ़ता गया और उन्होंने कहा कि “संस्कृत का गठन अद्भुत रूप से सुन्दर है; यह ग्रीक की पूछता से भी बढ़कर है, लेटिन से भी परिपुष्ट है, और इन दोनों भाषाओं से संस्कृत कहीं प्रधिक सुसंस्कृत भाषा है।” साथ ही इन तीन भाषाओं की धातुप्नों एवं व्याकरण में अत्यधिक साम्य ग्रनुभव करते हुए उन्हें प्रतीत होने लगाथा क्रि वास्तवे में उनका उद्भव किसी एक ही भाषा से हुआ होगा, जो कि अब लुप्त हो चुकी है। सर विलियम जॉन्स का यह भी विचार था कि जमंन, गॉथिक और केल्टिक तथा प्राचीन पारसीक भी उसी कुल की भाषाएं हैं । जॉन्स की यह धाररणा वास्तव में एक ग्रस्यन्त चमत्कारपूर्ण सत्य एवं वैज्ञानिक कल्पता सिद्ध हुई, भौर कुछ समय पश्चात्‌ वह भाषा-कुलों का सिद्धान्त प्रति पादित करने में पथ-प्रदर्शक हुई । साथ ही एक ही उदगम-स्थानवाली विभिन्‍न भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन से धीरे-धीरे आधुनिक भाषा-विज्ञान का जन्म हुआ । यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आधुनिक भाषा-विज्ञान का जन्म उसी घड़ी में हुआ, जबकि संस्क्रृत, ग्रीक, लेटिन तथा गॉथिक एवं प्राचीन पारसीक भाषाओं की एक ही कुल से सम्भूत होने की चमत्कारपूर्ण सू सर विजलियम जोन्स के मस्तिष्क मे झ्राई । यूरोप, एशिया, ग्रफीका, आस्ट्रेलिया, झॉशेनिया एवं प्रमरीका हें जिन विभिन्न भाषा-कुलों से सम्बन्धित भाषाएँ तथा बोलियाँ बोली जाती हैं उनमे सबसे महत््वपूणं भारतीय-ग्रायं-भाषा ही है । पृथ्वी पर इसके बोलनेवाले लोगो की सख्या सबसे प्रधिक ই, श्रौर इसके ्रन्तर्गेत कुछ एेसी भ्रत्यन्त प्रभाव- शाली प्राचीन एवं भ्र्वाचीन भाषाएँ भा जाती हैं, जिनका स्थान मानव की प्रगति के इतिहास में पिछले पच्चीस सौ वर्षों से सर्वाग्र रहा है। संसार में अन्य भी कई बटे माषा-कुल हैं, उदा हरणार्थ---9८70100 सेमिटिक-कुल (*ऑअसीरी बाब्लोनी, #हिब्र , “फीनीशियन, *सीरीयक, भरबौ, *साबीयन्‌, *इथियोपियन ओर हब्शी ) ; पिथ्णाएं८ हैसिटिक-कुल (“प्राचीन मिस्री, *कॉप्टिक, त्वारेग, कबाइल और সন্ম 9০:৮৩ 'बबंर' भाषाएं, सुमाली, फूलानी इत्यादि); 979०-1४9८०४ चोनी- लिब्बती या भोट-लोनो (सिनिक या चौनी, दे या थाइ झर्थात्‌ स्थामी, म्रन्मः ब्रह्मी बोद या भोट या तिब्बती, भारत-श्रह्म सी मान्त प्रदेशीय भाषाएं इत्यादि ); 15110 उरालो (मग्यर, फिनू, एस्थ, लाप, बोगुल, भोस्त्याक); 51:७८ झ्ल्टाई (तुर्की भाषाएँ, मंगोली पौर मंब); 079४0191 द्राबिड़ो (तमिल, मलयालम्‌, कन्नड, উপ भरक्‍शक- * ये मृत भाषाएं हैं |




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