आधुनिक हिंदी काव्य में भक्ति चेतना का स्वरूप | Adhunik Hindi Kavya Mein Bhakti Chetna Ka Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 ©, =. अथौर्थिता भविति। नारद ने भी गौणी भक्ति को स्थापितं किया, ओर उसके ग्यारह प्रकार बताये। गुण माहत्म्यासविति, रूपासवित्त, पूजासक्ति, स्मरणसंक्ति, दास्यसक्ति, साख्य - सक्ति, वात्सल्यसंक्ति, कान्तासविति, आत्म नेवेदन सवित, तमन्यता सक्ति, परम विरहा सक्ति। श्रीमद्भागवत्‌ में भक्ति के नौ प्रकारों की चच की गयी। श्रवणं कीतेनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्‌। अचैनं वन्दनं दास्यं सख्यं आत्मानिवेदनम्‌। । इसके अतिरिक्त भव्ति के अन्य प्रकार से भी भेद भागवत में मिलते है। इनके अनुसार भव्ति तीन प्रकार की बतायी गयी - सात्विकी राजसी ओर तामसी+ भागवत्‌ मे वणित भवित के ये तीनों प्रकार गौणी भविति के ही अन्तर्गत आते है। इन वमीकरणों के अतिरिक्त भी भागवत म भक्ति के कईं ओर प्रकारो की चचौ की गयी है। जैसे निष्काम भक्तिः अहैतुकी भक्तिः नैष्ठिकी भवितत अकिंचन भक्तिः निरपेक्ष भविति? आदि। भविति रसामृतसिंधु मेँ रूप गोस्वामी ने भक्ति के जो भेद-विभेद प्रस्तुत किया है, उनके अनुसार भव्ति के तीन प्रकार सिद्ध होते हे - साधन भति, भावभक्ति ओर प्रेमाभव्ि। 0 साधन भक्तिकेदोभेद है - वेधी भविति, रागानुगा भव्ति।1‡ जो भव्ति श्नं के विधि निषेधो का अनुपालन करती हुई विविध विधानं से संपादित की जाती ह उसे वैधी भक्ति कहते है। रागत्मिका भक्ति वह है जो रस का अनुभव प्रदान करती है। वैधी भक्ति वह धारा है, जो अपने दोनो किनारों से बंधी होती है, पर रागानुगा वहं बाढ है जो किनारों का बंधन स्वीकार नहीं करती। रागात्मिका भक्ति को भी रूप गोस्वामी जीने दो भागों में विभाजित किया। कामानुगा ओर सम्बन्धानुगा। तन्मयी या भवद्‌ भक्तिः साऽत्र रागत्मिकोदिता। सा कामरूपा सम्बन्धरूपा चेति भवेदुद्िधा। “° यनः त कीत वाव चमः অত রে অনি कः उत लय उमायाः पोः पथा च्यक वकाः ज पयतः एमा नयक ও ই ভিউ হা বউ তত তি গে সরে सदः श्यत्‌ उक व গাব डा (शः उण उलि आ पीत वयय काः पि मोष मायः पक अः তা হা হে এত জনি ভাজার কার 1 भागवत्‌ - 7/5/23 7. भागवत्‌ - 1/2/18 2 भागवत्‌ - 3/29/10 8. भागवत्‌ ~ 5/18/12 3 भागवत्‌ ~ 3/29/9 9. भागवत्‌ ~ 11/20/3535 4. भागवत्‌ - 3/29/8 10. सा भवितः साधनभावः प्रेमाचेति त्रिधोदिता 5. भागवत्‌ ~ 5/18/21 भविति रसामृत सिन्धु - 2/4 6. भागवत्‌ - 1/2/18 11. वेधी रागानुगा चेतिसा द्विधासाधनामिधा 12. भक्ति रसामृत सिंधु - 2/272, 273 भक्ति रसामृत सिधु 2/5




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