दशरथ नंदन श्री राम | dasharath nandan shree raam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९६. হানতে समर्थ सलाहकारों ओर कर्मचारियों के बीच राजा दशरथ सूर्य की तरह प्रकाशमान थे । दशरथ को राज करते इए कई वं बीत मए, कितु उनका एक सनो- कामना प्‌ 1 नहीं हुई थी--अबतक उन्हें पुत्रलाभ नहीं हुआ श एक बार वसंत ऋतु में चितातुर राजा के मन में यह बात आई कि 'पुत्रकामेष्टि' और 'अश्वमेध यज्ञ किया जाय | उन्होंने गुरुजनों से राय ली। भुरुजनों ने समर्थन किया । सबले निर्णय किया कि ऋषि ऋष्यश्छृंग को बुलाया जाय और उनकी देखरेख में यज्ञ किया जाय | थज्ञ की तयारियां होने लगा। राजाओं को निमंत्रण भेजे जाने लगे और यज्ञ मंडप का निर्ममम्‌ आदि कायं तेजी से शुरू हो गए । उन दिनों यज्ञ करता कोई मासू ली बात न थी। सबसे पहले देदी का निर्माण ध्यानपूर्वक किया जाता था । इस कार्य के लिए निपुण लोग ही नियुक्त किये जाते थे । उनके नीचे कई कमंचारी होते थे। विशेष-विशेष प्रकार के बतेन बनवाने पड़ते थे । बढ़ई, शिल्पी, कुएं खोदनेवाले, चित्रकार, गायक, विविध वाद्यों को बजानेवाले और नतंक्‌ एकत्र करने पड़ते थे ॥ हजारों की संख्या में आनेवाले अतिथियों को ठहराने के लिए एक नये नगर का ही गिर्माण किया जाता था, जहां सबके लिए भोजन और मनोरंजन की भी व्यवस्था होती थी। सभी को बस्त्न, धन, गौ आदि का दान देता भी आवश्यक माना जाता था। एेसे अवसर पर उन दिनों उसी प्रकार के प्रबंध होते थे, जैसे आज- कल के बड़े-बड़े सम्मेलनों के लिए हुआ करते हैँ ¦ ये सब कायं सम्यक्‌ रूपमे हो जाने के उपरांत वारो दिशाय मे श्रमण करके विजयी होकर लौटने के लिए यज्ञ के अश्व को बड़ी सेना के साथ মজা गया । হক জন নীল जाने के बाद यज्ञ का अश्व और सनिक विजय- पताका फहराते हुए कौतुक तथा शो र-शराबे के साथ निरविध्नि अयोध्या लौट आये। तत्पश्चात शास्त्रों के आदेशों के अनुसार यज्ञ-क्रिया प्रारंभ हुई । अयोध्या में जिस समय यह सब चल रहा था, देवलोक में देवों की एक . भारी बैठक हुई। वाल्मीकि कहते हैं कि ब्रह्मा को संबोधित करके देवों ने शिकायत की, “हे प्रभू, राक्षस रावण को आपसे वरदान मिल गया है। उसके बय से वह हम सबको बुरी तरह से सता रहा है। उसे दबाना, जीतना या मारना हमारी शक्ति से बाहर है। आपके बरदान से सुरक्षित होकर उसका दपं बहुत बड़ भया है। वह सबका अपमान करता रहुता है। उसके अत्या-




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