श्री भगवती सूत्र सार संग्रह [भाग - २ ] | Shri Bhagavati Sutra Saar Sangrah [Bhaag 2]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
371
श्रेणी :
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No Information available about पूर्णानन्द विजय (कुमार श्रमण) - Purnanand Vijay (Kumar Shraman)
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)নন্বস্থন प्रवततक शास्त्रविद्यारद जेनाचार्स
स्व. विजयधमसूरी खरजी मं. का जीवनबूत
न 1५.2५ ত
बहन दी दर पद्राद्रपर হয কের মর্ম में रहे हए হাতে হী হরি
दम्या आँध नो तम्रस्थ सभी सरान, दक्ष एक समाय का टिखने में शार्देग
क्योकि देवनेन बहुत दी ऊंचा जा शुफा है। उसी प्रकार यानव की
मसानथदा, सध; दयाडु को दयारकुता जश्न शच्छी यरह से विष्सित हा जाती
है, तथ बा मानव मानद पे घारीर में ही देश्सा धन जाता है? मेरे
दादायृंग श्रीविमयध्मसूरीखरणी मसदहागज़ की क्षास्मा सुनिपद् स्वीकार
दमन फः पदान् दिन प्रोदित ऊंची घह़ती गछे, साथुता का विफास होता
गया, व्यक्षितत्व खिल्लता गया, बकतासत्र में सोचकरता तथा उशादेशता बढ़ती
गह, जीभ मे मद्रास य সুতি তান पाई, नथा शासा सं सानघ समाज पर
समीम प्रेम छी धारा मथादातित होती गई, मभी तो देवाधिदेव भगवान
सहानीरस्थासी के ७४, थीं पार पर মাসান होकर शासन की शोभाच
समान की सेवा भद्दिदीयसूष में कर पाये हे ।
पालीतादा गिरदयारती লাহি तीर्थशूमिक्रों से पविश्रतम হই हु
सौराष्डू (कादीयाबाउ) देख में महुवा ना नगरी में रामचन्द्रदोद्ध तथा
कमला दोठाणी रहते थे। धार्मिक जीवन के उपासक, सरल परिणामी भद्गिक
नथा भावदया से परिप्रण उनसे दंपती के यहां पर देवभूमि का स्थागकर
विज्ञयधमंसुरीखरणी की छात्मा मृझछेंद्र के नाम मे छवतरित हट 1
माता-पिता के प्यार सें बाल्यजीयन पुण्ण हुआ शरीर चिद्योभ्यास तरफ बढ़ने
का प्रयत्न किया परंतु साथुता की उच्चतम भूमिका धाप्त करनेवाली
छात्मा को पेट भरते की पिद्याओं से জগ पापान्दादक च वर्धक द्भ्यो.
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