गांधीवाद की शव - परीक्षा की जरुरत | Gandhivad Ki Shav Pariksha Ki Jarurat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gandhivad Ki Shav Pariksha Ki Jarurat by यशपाल - Yashpal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about यशपाल - Yashpal

Add Infomation AboutYashpal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सत्य श्नौर भर्दिसा का उद्देश्य २१ सकता है । यदि मनुष्य अपने जीवन के लिये आदर्श, उद्देश्य और क॒तंव्य की वात सोचना चाहता है तो उसका सबसे पहला कतंव्य जीवित रहने के लिये प्रयत्न करना है। मनुष्य ने करिया मी यही है | उसके व्यक्तिगत औ्रौर सामूहिक कार्यों का इतिहास इस बात का गवाह है कि मनुष्य जीवित रहने, भली प्रकार जीवित रहने श्रोर उत्तरोत्तर शक्ति ओर सामथ्य प्रातकर आराम श्रोर समृद्धि में जीवित रहने का यत्न करता आया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये ही मनुष्य ने आदर्श, उद्देश्य, कर्तव्य और धर्म के साधनों का व्यवहार किया है | इस उद्देश्य के पूरा करने के लिये मनुष्य ने जो विचार और निश्चय किये, जिन व्यवहारो का उपयोग किया, उन सवर की श्रखला दी मनुष्य के धर्म ओर सम्यता का इतिहास है| मनुष्य जीवन को उद्देश्य और धर्म या कतंव्य को साधन मानकर भी कमी-कमी धर्म और कर्तव्य के लिये मनुष्य का जीवन बलिदान कर देना मुनासिव होता है| बलिदान और कृबोनी की उपयोगिता तथा बुद्धिमत्ता को समभने के लिये यह ध्यान में रखना चाहिये कि मनुष्य एक व्यक्ति के रूप में अपना जीवन निर्वाह नहीं कर सकता। मनुष्य एक दूसरे के आसरे जीते है | जिस प्रकार एक मनुष्य शरीर मे करोढो कोष्ठ (९5) या जीवाणु होते हैं, प्रत्येक अग़ु एक पृथक जीव होता है परन्तु मनुष्य शरीर से पृथक होकर उन कोष्ठों ओर श्रणुओं का जीवन नहीं रह सकता | उसी प्रकार मनुष्य व्यक्ति भी मनुष्य समाज से प्रथक होकर अकेला जीवित नहीं रह सकता | व्यक्ति का जीवन समाज के जीवन से ही चल सकता है। व्यक्ति का हित-ग्रहित, मलाई-वुराई समाज के हित-अहित ओर भलाई-बुराई पर निर्भर है | लाखो बरसों ओर पीढियो के अनुभव से मनुष्य इस वात को समझ गया दे कि वह समाज से पृथक जीवित नहीं रह सकता। मनुष्य की व्यक्तिगत उन्नति ओर शक्ति समाज की उन्नति पर ही निर्मर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now