जीवन और शिक्षण | Jeevan Or Shikshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कौटुविक पाठशाला १७
जरीरकी याता, यह् उदार श्रथं मनम कंठाना चाहिए ! मेरी शरीर-यात्रा
লালী समाज्ञकी सेवा और इसीलिए ईश्वरकी पूजा, इतना समीकरण
दृढ होना चाहिए । ओ्रौर इस ईश्वर-सेवा्में देह खपाना मेरा कत्तंव्य ই
और वह् मुञ्च करना चाहिए, यह भावना हरेकमं होती चाहिए । इसलिए
वह छोटे वच्चोमें भी होनी चाहिए । इसके लिए उनकी शक्तिभर उन्हें
जीवनमे भाग लेनेका मौका देना चाहिए और जीवनको मुख्य केंद्र बनाकर
उसके श्रासपास आवश्यकतानुसार सारे शिक्षणकी रचना करनी चाहिए ।
- इससे जीवनके दो खड न होगे । जीवनकी जिम्मेवारी ग्र॑चानकं म्रा पडने
से उत्पन्न होनेंवाली अडचन पैदा न होगी। अनजाने शिक्षा मिलती
रहेगी, पर शिक्षणका मोह नहीं चिपकेगा और निष्कास कर्मकी ओर
प्रवृत्ति होगी ।
४ हे
कोट बिक पाठशाला
विचारोका प्रत्यक्ष जीवनसे नाता टूट जानेसे विचार निर्जीव हो जाते
है और जीवन विचार-शून्य वन जाता है । मनुष्य घरमें जीता है और
सदरसेमें विचार सीखता है, इसलिए जीवन और विचा रका मेल नही बैठता ।
उपाय इसका यह है कि एक ओरसे घरमें मदरसेका प्रवश होना चाहिए
और दूसरी शोरसे मदरसेमें घर घुसना चाहिए । ससाज-शास्त्रकों चाहिए
कि शालीन कुदुव निर्माण करे और शिक्षण-शास्त्रको चाहिए कि कौटुविक
पाठशाला स्थापित करे ।
छात्रालय अ्रथवा शिक्षकोके घरको शिक्षाकी वुनियाद मानकर उसपर
शिक्षणको इमारत रचनेवाली शाला ही कौटुविक शाला है । एसे कौटुचिक
शालाके जीवनक्रमके सवधर्में--पाठ्यक्रमको अलग रखकर--कुछ सूचनाए
इस लेखमें करनी है । वे इस प्रकार है---
(१) ईश्वर-निष्ठा ससारमें सार वस्तु है । इसलिए नित्यके कार्यक्रम-
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