जीवन और शिक्षण | Jeevan Or Shikshan

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Jeevan Or Shikshan by विनोभा भावे - Vinobha Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कौटुविक पाठशाला १७ जरीरकी याता, यह्‌ उदार श्रथं मनम कंठाना चाहिए ! मेरी शरीर-यात्रा লালী समाज्ञकी सेवा और इसीलिए ईश्वरकी पूजा, इतना समीकरण दृढ होना चाहिए । ओ्रौर इस ईश्वर-सेवा्में देह खपाना मेरा कत्तंव्य ই और वह्‌ मुञ्च करना चाहिए, यह भावना हरेकमं होती चाहिए । इसलिए वह छोटे वच्चोमें भी होनी चाहिए । इसके लिए उनकी शक्तिभर उन्हें जीवनमे भाग लेनेका मौका देना चाहिए और जीवनको मुख्य केंद्र बनाकर उसके श्रासपास आवश्यकतानुसार सारे शिक्षणकी रचना करनी चाहिए । - इससे जीवनके दो खड न होगे । जीवनकी जिम्मेवारी ग्र॑चानकं म्रा पडने से उत्पन्न होनेंवाली अडचन पैदा न होगी। अनजाने शिक्षा मिलती रहेगी, पर शिक्षणका मोह नहीं चिपकेगा और निष्कास कर्मकी ओर प्रवृत्ति होगी । ४ हे कोट बिक पाठशाला विचारोका प्रत्यक्ष जीवनसे नाता टूट जानेसे विचार निर्जीव हो जाते है और जीवन विचार-शून्य वन जाता है । मनुष्य घरमें जीता है और सदरसेमें विचार सीखता है, इसलिए जीवन और विचा रका मेल नही बैठता । उपाय इसका यह है कि एक ओरसे घरमें मदरसेका प्रवश होना चाहिए और दूसरी शोरसे मदरसेमें घर घुसना चाहिए । ससाज-शास्त्रकों चाहिए कि शालीन कुदुव निर्माण करे और शिक्षण-शास्त्रको चाहिए कि कौटुविक पाठशाला स्थापित करे । छात्रालय अ्रथवा शिक्षकोके घरको शिक्षाकी वुनियाद मानकर उसपर शिक्षणको इमारत रचनेवाली शाला ही कौटुविक शाला है । एसे कौटुचिक शालाके जीवनक्रमके सवधर्में--पाठ्यक्रमको अलग रखकर--कुछ सूचनाए इस लेखमें करनी है । वे इस प्रकार है--- (१) ईश्वर-निष्ठा ससारमें सार वस्तु है । इसलिए नित्यके कार्यक्रम-




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