आचार्य भिक्षु और महात्मा गाँधी | Acharya Bhikshu Aur Mahatma Gandhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ आचाय भिश्च भौर महात्मा गावौ
तक अनेकों विचारकोंने अर्दिसाका मंथन किया । अर्िसाकी
सावभौम सत्ताका पाठ संसारको वताया, किन्तु मानव-जीवन
को आवश्यकताओं का भूत ज्योंही उठकर सामने आया; वे एका-
एक अहिसाका गला घोंटने पर उतारू हो गये |
आचार भिक्षु और महात्मा गाधीने भी अर्हिंसाका जी तोड
मन्थन किया । उनका आवश्यक हिंसा विपयक दृष्टिकोण तो
विचार-जगत्मे अपूवंसा है। वह सवंसाधारण की वद्धमूल
धारणाके वहुत परे और वास्तविकताके वहुत समीप द्े। उक्त
दो विचारकोंका सामझ्जस्यपूर्ण निर्णय भी पाठकोंके हृदयमे एक
आश्चय और जिज्ञासा उत्पन्न करनेवाला सा है ।
आचाय भिक्षु अहिसाका अन्त स्पर्शी विवेचन करते हुए
लिखते है :--
अथ अ्रनर्थ हिसा कीधा, अहित रो कारण तास ।
धर्म रे कारण हिसा की धा, बोध-बोज रो नाश ।।'
भावाथ--आवश्यक या अनावश्यक दिसा पाप हैं। हिंसा
करके भी यदि उसमे घम माना जाता है तो उससे तो उप्तका
बोध-बीज ही नष्ट हो जाता है अर्थात् उसकी सम्यगू-दृष्टि ही
नष्ट हो जाती दे |
आचाय भिछ्लुने बताया--अहिसाका सम्बन्ध मात्र मानव-
समाजसे ही नहीं है, वह पशु, पक्षी व वनस्पति आदि स्थावर
प्राणियोंको भी अभय देती है। आवश्यक ओर अनावश्यककी
मर्यादा मानव-कढ्पित दहै। उससे मानव-समाजका ही ऐहिक
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