अकबरी दरबार भाग - १ | Akbari Darbar Bhag I

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Akbari Darbar Bhag I by रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

Add Infomation AboutRamchandra Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ सोष्ददा, अपने दुखी जो को वहलाणा, जंगहों पह्दाढ़ों सें से होता हुआ 'चढा जाग था। राखे में एक जगदद पड़ाव पढ़ा था कि ने खाकर सुचना दी कि कामरान का असुक चकील सिघ की शोर ला रदा है । शाद हुसेन अरगूत को चेटी से फामरान के धटे के विवाद की बातचीत करने के छिये जा रद्दा दै। इस समय सीवी के दिटे में हुआ दै। हुमायूँ ने उसे घुलाने के लिये एक सेवक भेजा; पर चंद किले में चुपपवाप रहा । रसने कदला दिया कि किटेबाले मुझे आने नहीं देते | हुमायूँ को दुःख हुआ । हुमायूँ इसी अवस्था में शार * के पाप्त पहुँचा । मिरजा अस्करी को भी घसके जाने फा समाचार मिल चुका था । चेमुरव्वत भाई ने छपने दुखी और गरीब माई के थाने का समाचार सुनकर इसलिये एफ सरदार पहले से ही भेज दिया था कि चद्द उसके संबंध की रुप फा पता ढगाकर दिखता रदे। इघर टुमायूँ ने भी पहले से हो अपने दो सेव को सेल दिया था । ये दोनों सेवक चस्त सर- दार को रए़्ते में दो, मिल गए। रसने इन दौर को गिरपतार करके चार भेज दिया थीर जो ६छ समाचार मादूम हुआ, ६ लिख सेना से एक विसी प्रकार भागपर फिर हुमायूँ के पास था भर जो 5 छ दर्द देखा, सुना आर सममा था, चद्द सब कह सुनाया। उसने यह मी कहा कि इजूर फे झाने का समाचार सुनकर मिरणा बहुठ पदराया है। चद्द फघार के फिले की सोरपेवंदी भरने इगा दैं। माई का यदद ध्यवद्ार देखकर वी सारी आशाएँ में मिब गई इसने सुददंग की ओोर चारों फेरी । पर फिर भी रसने माई फे नाम एफ प्रेमपूरी पत्र लिखा जिसमें झपनोयत के ल्टू को बुन्स्पाध्वट का टिस्दी | रनपस्पान कंदार से ग्यारइ बोए हो है !




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now