पत्थर युग के दो बुत | Patthar Yug Ke Do But

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : पत्थर युग के दो बुत  - Patthar Yug Ke Do But

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

Add Infomation AboutAcharya Chatursen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१६ पत्थर-युग के दो बुत मेहमान आने लगे पर उनका कही पता न था। मेरे पैरो के नीचे से वरती खिसक रही थी । लोग हँस-हँसकर बवाइया दे रहे ये, चुहल कर रहे थे। मुझे उनके साथ हंसना पडता था, पर दिल मेरा रो रहा था। यह तो बिना दूल्हे की बरात थी। बडी देर में आए उनके ग्रन्तरग मित्र दिलीप- कुमार) श्रागे वढकर उन्होंने सब मेहमानों को सम्बोधित करके कहा “बन्घचुओ श्रौर वहिनो, वड खेद की वात है कि एक ्रत्यावश्यक सरकारी काम में व्यस्त रहने के कारण दत्त साहब इस समय हमारे वीच उपस्थित नही हो सकते हैं। उन्होने क्षमा मागी है और अपने प्रतिनिधिस्वरूप मुझे भेजा है। खूब खाइए-पीजिए मित्रो |” इतना कहकर वे मेरे पास आए | मुझे! तो काठ मार गया । मैंने कहा, “क्या हुआ ?/ “कुछ वात नही भाभी, उन्हे बहुत ज़रूरी काम निकल आया। आओ, अब हम लोग मेहमानों का मनो रजन करे, जिससे उन्हे भाई साहव की गेरहाजिरी अखरे नही ।” और वे तेजी से भीड में घुसकर लोगो की झ्राव- भगत में लग गए। निरुपाय हो छाती पर पत्वर रखकर मुझे भी यह करना पडा। पर मैं ऐसा अनुभव कर रही थी जैसे मेरे शरीर का सारा रक्त निचुड गया हो, और मैं मर रही होऊ । जेसे-तंसे मेहमान विदा हुए । सूने घरमे रह्‌ गए हम दो--दिलीप- कुमार और में । उन्होने मेरे निकट श्राकर कहा, “यह क्या भाभी, तुम्हारा 1 चेहरा ऐसा हो रहा है, जैसे मही नो की बीमार हो। क्‍या तबियत खराब है तुम्हारी | “नही, मैं ठीक है, पर वे कब तक लौटेंगे ? ”” “उन्होने कहा था कि छुट्टी होते ही मै श्राजाऊगा। अब जब तक भाई साहव नही झा जाते, मैं यहा हु । आप चिन्ता न कीजिए । लेकिन आपने तो कुछ खाया-पीया ही नही है। इतने लोग सा-पी गए, जो मालिक है वही रह गया। तो कुछ खा लीजिए न--मै लाता है ।” पर मैने उन्हे रोककर कहा, “नही, मैं कुछन खाऊगी, आप यैठिए 17 मैंने एक कुर्सी की ओर इशारा নং




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now