देशबंधु चित्तरंजनदास का जीवन चरित्र | Desh Bandhu Chittaranjan Das Ka Jivan Charitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Desh Bandhu Chittaranjan Das Ka Jivan Charitra by Devnarayan Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

Add Infomation AboutDevnarayan Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हू देशबन्धु चित्तरंजनदास रच ४ राधा कल चित दा लाला धार जितने परीक्षामें पास हुए छात्रोंको नौकरी देनेकी बात थी उतने. की अपेक्षा एक कम पायी गई । अर्थात्‌ देशबन्धु दासहीका स्थान कम किया गया । कं पक्षने यह देखा कि सिविलसर्विस- की परीक्षामें उत्तीण हुआ यह बालक भारतके किसी प्रदेशका उच्चपद प्राप्कर भारतकी भलाईकी ओर अधिक रकेगा जिससे अंग्रेजोंकी स्वाथ॑-सखिद्धिमें बाघा पड़ेगी । यहीं कारण था कि उन्होंने श्रीयुत दासका निवांचन नहीं किया । यह देख उत्साही चित्तरंजनदास ज़रा भी विचलित नहीं हुए और. प्रसन्नता पूर्वक 00. वि 0. 5 अथात्‌ मैंने अछृतकाय परीक्षा ्थियोंमें पहिला स्थान प्राप्त किया । इसके बाद आप बेरिष्टरीकी परीक्षाकी तैयारी करने लगे और सन्‌ १८४३ में बेरिछरी पासकर आप भारत लौटे । विलायतमें रहकर आपने इस बातका अच्छी तरह अनुभव प्राप्कर लिया. कि भारतीयोंके प्रति अंग्रेजोंका कया भाव है । गरीब देशकी अथाह सम्पत्ति खींचकर ब्रिटिश जाति आजदिन संसारमें किस प्रकार प्रधान बन रही है । उनकी प्रतिभा स्वदेशप्रेस व्यापार कलाको- शल आदि उन्नतिशील कार्यो को देखकर देशबन्धु दास महाशयके . . हृद्यमें देशप्रेस तथा नवीन भावींका संचार हुआ । भारत लौटकर आपने इ ग्लैंड निवासियोंके विषयमें अनेक बातें बतलाई और लोगों को देशके कार्यशषेत्रमें उतरनेका उपदेश दिया। देशबन्धुदास- _ को सिविलस्विस परीक्षामें सफलता प्राप्त न होनेका समाचार. _खुन उनके पिता तथा अन्यान्य आत्मीय जनोंकों बड़ाही दुःस्क




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now