मध्य हिंदीव्याकरण | Madhya Hindi Vyakaran

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Madhya Hindi Vyakaran by Kamtaprasad Guru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू. टेक .. कवर्ग--कफ ख ग थे ड | चवरग--प छु ज भक जे । रवर्ग--ड ठ ड. ढ ण | तवर्ग-त थ द घ ने | ८ पचगं--प फ ब. भर म। ३३--उच्चारण के श्रनुसार व्यंजनों के दो भेद श्र हैं-- १ झदपप्राण और २ महाप्राण जिन व्यंजनों में हकार की ध्वनि विशेष रूप से सुनाई देती है उनको महाप्राणा और शेष व्यंजनों को श्यतपपाण कहते हैं। स्परशे व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा श्रन्चर तथा ऊप्म महाश्राण डे जैसे--ख घ छु क ठ ढ थ घ फ म घोर श .घ स ह। शेप व्यंजन झतुपग्राण हैं । सब स्वर झत्पप्राण हैं । ३४--दिंदी में ड और ढ के दो दो उच्चारण होते हैं-- १ सूद्न्य र द्विंस्टष्ट । 1१ मद्धन्य उच्चारण नीचे लिखे स्थानों में होता है-- क शब्द के आदि में जैसे--डाक डमरू डन ढिंग ठँग । ख. द्वित्व में जैसे-श्रदूडा लड्डू खड्ढा । ग ड्रस्व के पश्चात्‌ झनुनासिक व्यंजन के संयोग में जैसे डंड पिंडी चंद मंडल । २ द्विस्पृष्ठ उच्चारण जिह्मा का झम्र साग उलटाकर मूर्उा में लगाने से होता है । इस उच्चारण के लिये इन झत्रों के नीचे एक एक बिंदी लगाई जांती है । द्रिस्पष्ट उच्चारण बहुधा नीचे लिखे स्थानों में होता है-- क शब्द के मध्य श्रथवा अंत में लैखे--सड़क पकड़ना श्राद गढ़ चढ़ना । ख. दीघ स्वर के पश्चात्‌ शझ्नुनासिक व्यंजन के संयोग में दोनों उच्चारण बहुधा विकल्प से होते हैं जसे-+मूँडना मूडना . खाँडि खाद मेंढा मेढ़ा ।




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