जैनेन्द्र के विचार | Jayendra Ke Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९३
परमात्म-तक्त्वके विपयभे जैनेन्द्रकी आस्तिकता कुछ अशयवादियेंकी सी है |
वे तकंसे परमात्माको सिद्ध नहीं करना चाहेंगे । उनके ख्यालमें तो * जो है सो
परमात्मा है! । उसे वे * अस्तित्वकी राते ” मानकर चलते हैं | जैनेन्द्रकी इस
भावुकतामे हिन्दू ममियोकीन्सी सारूप्य-प्रधान कातरता घुली हुई नजर आती है
जो अत्यधिक माननीय नहीं नो भी .सर्वथा मननीय अवश्य कही जा सफ़ती है|
जैनेन्द्र श्रद्धा हैं| वे अपनी श्रद्ा किसी भी चीजके खातिर' सोना नरी
चाहते, अपनी श्रद्धापर उन्हे इतनी श्रद्धा है। वे कला, जीवन, साहित्य,-+समस्त
विचारोका अन्तवबिन्दु उसी सत्य-तत्वकी मानते हैं । परन्तु, तो भी, वे
परमात्मकोी अगम और अज्ञेय ही समझते हैं। स्पेन्सने जब ज्ञेयवाद ओर
अज्ञेयवादरकी मीमासा की तब उसकी दृष्टि वशानिक अधिक थी । पर जेनेन्द्रक्ती
आसख्तिकता অভ या गॉधीके जैसी है. जिसमे, विज्ञाससे अधिक, केंटके
परमात्म-अत्तित्वकी नेतिक आवश्यकताका तर्क ही अधिक स्वर्यशील है |
यही जेनेन््के सत्य ओर वास्तवके अन्तरको सम्चना होगा } तर्का
ब्रेडलेके “ मास ओर वास्तव * ग्रेथमे कहा गया है कि ““वास्तवके साथ मेरा
सबंध मेरे सीमित अस्तित्वमे है। क््यें। कि, इससे अधिक प्रत्यक्ष संबधमे में
कहाँ आता हैँ, सिवा उसके जिसे मैं महसूस कर रहा हूँ यानी “ यह । ` ( “भास
प्रृ० २६) और यहाँ ‹ यह् ` उसी अर्थमें वास्तव है जिस अर्थमे ओर कुछ
वास्तव नहीं हैं ” (५० २२५ ) कुछ कुछ यही स्थिति ज्यूलियन हक्स््ले जैसे
वैज्ञानिकने अपने साक्षात्कारशूत्य धर्म ” नामक पुस्तकमें स्पष्ट की है। यह
~ तक कि चेतन मनकी थ्योरी ईजाद करनेवाले विलियम जेम्स जैसे मनोवैज्ञानिक
भी अन्ततः जाकर जब जव रहस्यवादी बने है, तत्र तव यह जान पडता है कि
वेज्ञानिकं अथवा ताकिंक बुद्धि ही सत्यको समयरतासे आकल्ति करनेका मागे नहीं।
उसे भाव-गम्य भी बनाना होगा । यही हार्दिकता ओर श्रद्धाकी महत्ता, आपसे
आप সি ओर सिद्ध हो जाती है।
जैनेन्द्रके समश्विदके विषयमे एक शब्द कहना जरूरी होगा। जैनेन्द्रके
व आत्-तक न गोण माना गया और न सुलाया ही गया है। या
कुछ सुधारकर कहे तो रच आत्म-बोयमत ही समषहि-बाच जगत होगा एसा मानों
जया है। “जिघर देखता हूँ उधर दक्ष तू ई जैसी सर्वाः বাই? | “जिघर देखता हूँ उधर तू ही বুই” জ্বী सर्वः ममावकी ` स्थिति
हचनेपर मो । ध्न यान पानी अध्याधादा अहजच्ाला লতা আকন যা दुरे नही रह
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