अर्थ विज्ञान और व्याकरण दर्शन | Arth Vigyan Aur Vyakaran Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
74 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( ११ )
शब्दतत््य है। दोनों का समन्वय करना विखाना द्वी ज्ञान और थिज्ञान है। यही शब्दवाद
है, यही स्फोटवाद है, यही वाक्यस्फोट है, यष्टी ब्रह्मवाद है, यद्ये श्रत्मवाद है, यदी सत्य-
भौतिकवाद है और यही श्रथविज्ञान है ।
छतब्ता-प्रकाशन--शब्द-ब्रह्म एवं वाक्यस्फोट के स्वरूप को स्वीकार करने पर
कृतश्ञता-प्रकाशन एवं धन्यवाद जैषा प्रश्न ही नहीं उठता है, क्योंकि धन्यवाद देने
बाला कौन और धन्यवाद लेने वाला कौन ! जहाँ तकर द्वैत बुद्धि है वहाँ तक अशान,
' अविद्या और तमोशगुण का प्रसार है। माया का आवरण है। अशानावस्था का कृतज्ञता-
प्रकाशन कहाँ तक सत्य है, यह विचारणीय है। अद्वेत-बुद्धि होने पर कृतशता-प्रकाशन
छ्मसंगत-सा प्रतीत होता रै । पाणिनि, पतज्ञलि श्रादि आचार्यो का मन्तव्यहैकि लोक
में लीकिक शिष्टाचार का परित्याग नदीं करना चाहिए, श्रतपव अभिन्न मं शिष्टाचार की
रक्षानतु भिन्नता की बौद्ध कल्मना करफे धन्यवाद देने का साहस करता हू |
सर्वप्रथम शब्दब्रह्म ( बाकृतत्त्व, प्रतिभा ) का कृतञ्ञ हूँ, जिसकी कृपा से अ्रथतत्त्व
का विकास हुआ है श्रौर जिसकी कृपा रदस्यात्मक-स्प मे प्रारम्भ से श्रन्त तक सवंदा इस
कार्य में बनी रही है। ~
वैदिक ऋषि मुनियों से लेकर श्राज तक के जितने भी शब्दशास्त्री दै, पतञ्जलि के
शन्दों में 'वागूयोगवित्' हैं, जिन्होंने शब्दतत्वऔर अयंतत््व का विवेचन करके वेद,
ब्राह्मण, आरणूयक, उपनिषद्, दशन, व्याकरण, साहित्य, एवं शान और विज्ञान की
विभिन्न शाखाओं को जन्म दिया है ओर जिनके ग्रन्थरक्ञों या प्रकाशस्तम्भों से प्रकाश
पाया है, उन सभी प्राचीन ओर अ्र्वाचीन, मारतीय और वैदेशिक शब्दशास्त्रियों का
सादर कृतज्ञ दू ।
परस्ततः निबन्ध मे श्रथतत्व का बीच श्री डा० बाबूराम सक्सेना, ( अध्यक्ष संस्कृत
विभाग, प्रयाग विश्वविद्यालय ) ने रक्खा है, श्री पंडित गोपीनाथ कविराज ( बनारस ) ने
शब्दतत्व' के वारि द्वारा उसको सिक्त किया है और भी डा० सिद्धेश्वर वसनां (नागपुर) ने
शब्दतत्त और अर्थतत्त को सम्बद्ध करके स्वनामानुकूल वातिककार कात्यायन के (सिद्ध
शब्दाथसम्बन्धे ) की सिद्धि की है, अतः शब्दशासत्र की सिद्धत्यी का विशेष तन्न हूँ।
साथ ही जिन महानुभावों से इस निबन्ध के विषय में विशेष आशीर्वाद,
प्रोत्साइन, सत्वराम्श एवं आवश्यक विचार प्राप्त हुए हैं उनका विशेष आभारी हूँ ।
उनमें विशेष उल्लेखनीय निम्नलिखित द :-
श्रो डा० राधाकृष्णन्, श्री डा० सुनीतिकुमार चटर्जी, भ्री पं० गोविन्दवल्लभ पन््त
( प्रधानमन्त्री यु० पी० ),; श्री डा० सम्पूर्णावन्द ( शिक्षामन्त्री यू० पी० ) श्री डा०
श्राचार्य नरेन्द्रदेव, भ्री पुरुषोत्तमदास टंडन, श्री प्रो० लुई रेनु (प्रो० संस्कृत विभाग,
पेरिस ), भ्री प्रो० मार्गेन स्टाइन (अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, ओसलो, नाव विश्वविद्यालय),
भरी डा० प्रसन्नक्ुमार श्राचायै, श्री डा० उमेशमिध, श्री पज सेवेशचन्द्र चट्टोपाध्याय, श्री
द° धीरेन वर्मा, शरी रघुवर पट्दूलाल शास्नी? भरी डा° वासुदेवशरण् श्रग्रवाल) श्री
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