कला के लिए | Kala Ke Liye

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Kala Ke Liye by डोक्टर र० श० केलकर - Docter R. S. Kelkarभार्गवराम विठ्ठल - Bhargavaram Viththal

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भार्गवराम विठ्ठल - Bhargavaram Viththal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अंक ६ विहवास- लेकिन चित्रकार हैं न वह ? बाब्राव--है यानी है बस, .पर कुछ भी हो वह नारी है। बिना सोचे उत्तर नही देगी, क्यो जी, ठीक है न ? रसरी- जवाब दो न रजनी ? रजनी--कुछ भी हुई तो भी में श्रौरतत जात हूँ. विचार करने के लिए समय चाहिए न भुभे ? विश्वास-कितना समय चाहिए ? रजनी--पांच साल । बाब्राव--सुनिए विश्वासंराव । विश्वास--पॉच साल ? रजनी--मे समभती हूँ पॉच साल भी पर्याप्त न होगे । बडे महत्त्व का प्रइन है यह । कम से कम बीस-पच्चीस साल तो सहज ही लग जाएँगे । बलवंत--रजनी जी का स्वभाव बडा নিলীহী ই | भाग्यवान है आप बाबूराव। बाब्राव--भ्ौर आप ? बलवन्त--हमारा क्या. .चल रही है पुराने जमाने की धर-गिरस्ती । रमरणी- लेकिन दादा वथो नही भ्राया भ्रब तक 7 बलवन्त--सदमा पहुँचा होगा बिचारे को स्वाभाविक भी है। किसे बुरा न लगेगा । ' आदमी सर्वेस्व व्यापार मे लगा दे और एकदम दिवाला पिठ जाय, वेसा हुआ है यह । विश्वास--लेकिन व्यापार करे तब न ? पानी में प॑से बहाकर रोने से फायदा रजनी--यह पुरुषो की ष्टि है । बाबूराव--शऔर प्ररतो की? रजनी--प्रौरतो की अरे गिरवी रक्खी होती हैँ नही तो देखती वे, झौर यदि देखती तो दिखाई भी देता, पर श्रॉखे ही अपने वश नही हैं यह




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