कला के लिए | Kala Ke Liye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
85
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डोक्टर र० श० केलकर - Docter R. S. Kelkar
No Information available about डोक्टर र० श० केलकर - Docter R. S. Kelkar
भार्गवराम विठ्ठल - Bhargavaram Viththal
No Information available about भार्गवराम विठ्ठल - Bhargavaram Viththal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अंक ६
विहवास- लेकिन चित्रकार हैं न वह ?
बाब्राव--है यानी है बस, .पर कुछ भी हो वह नारी है। बिना
सोचे उत्तर नही देगी, क्यो जी, ठीक है न ?
रसरी- जवाब दो न रजनी ?
रजनी--कुछ भी हुई तो भी में श्रौरतत जात हूँ. विचार करने के
लिए समय चाहिए न भुभे ?
विश्वास-कितना समय चाहिए ?
रजनी--पांच साल ।
बाब्राव--सुनिए विश्वासंराव ।
विश्वास--पॉच साल ?
रजनी--मे समभती हूँ पॉच साल भी पर्याप्त न होगे । बडे महत्त्व
का प्रइन है यह । कम से कम बीस-पच्चीस साल तो सहज ही लग
जाएँगे ।
बलवंत--रजनी जी का स्वभाव बडा নিলীহী ই | भाग्यवान है
आप बाबूराव।
बाब्राव--भ्ौर आप ?
बलवन्त--हमारा क्या. .चल रही है पुराने जमाने की धर-गिरस्ती ।
रमरणी- लेकिन दादा वथो नही भ्राया भ्रब तक 7
बलवन्त--सदमा पहुँचा होगा बिचारे को स्वाभाविक भी है।
किसे बुरा न लगेगा । ' आदमी सर्वेस्व व्यापार मे लगा दे और एकदम
दिवाला पिठ जाय, वेसा हुआ है यह ।
विश्वास--लेकिन व्यापार करे तब न ? पानी में प॑से बहाकर रोने
से फायदा
रजनी--यह पुरुषो की ष्टि है ।
बाबूराव--शऔर प्ररतो की?
रजनी--प्रौरतो की अरे गिरवी रक्खी होती हैँ नही तो देखती वे,
झौर यदि देखती तो दिखाई भी देता, पर श्रॉखे ही अपने वश नही हैं यह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...