रंग मंच | Rang Manch

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शेल्डान बेनी - Sheldan Beni

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श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रगसच नाटक, क्षमिनय और मंच-शिल्प के तीन सहस्र वर्ष [क দা এআ নর एणी री ग्रध्याय १ रंगमंच मानवीय प्नौर देवी ण कामा तोर जेब कभी भी मानव प्राणी ने अपने शरीर की रक्षा के लिए, जीवित रटने क# लिए, किये गये सपे कर आगे प्रगति की, वह देवताओं की और उन्मुख हुआ नार नारमत तथा आस्गामिश्यतित की और बढ़ा, रंगमंत्र किसी न. किसी रूप मे बेटी अवध्य নানা, এমা रंगमंच दी अभिनय, नृत्य, कथोपकथन, नाटक आदि का अनिवास स्थल बन गया था। 75, উম स्थिलि में उतान्न और विकसित विश्व नाटक तथा सामूहिक रंगमंच, आदिकालीन सुन्या से आधुनिक लादकी तक, धामिक पूजा-विधियों से अधामिक अभिनय শপ बताती मुर नाटकों भे आधुनिक्र चित्रों तक की समस्त 'रंगशाला' और नाटकों की परिभाषा की अपने सिन्र-भिन्न रूप-रंगों और पक्षों के कारण अपूर्ण बना देते 2ै। सझार भर के रगमंनों के चित्र को यदि सामन फलाकर्‌ रव दिया जाय, পি বিরদা অমন বাশা घदल पर उनके कार्यों की सम्पूर्ण प्रदर्शनी क्षण भर के लिए सजायी ताम, ता दर्शक ते रू जाने छेगा कि कोर्ट भी परिभाषा इतनी व्यापक अथवा लखीकी नही 7 सवती कि बट अपने अब्दों में इस कछा के विभिन्न तत्त्वों और रूपों को, रगमबीय नाट हीये जीवन 1: विभिन्न अगी और दिशाओं की, समेट सके। नाकः 7; मिश्रित एषी जोर विभिन्न तत्त्वों के सम्मिलित प्रकारों से--और यही बह कड़ा हैँ जी समस्त कछाओं का संगम होता है---अनेकरूपता और अस्पप्टता का जन्म होना 2। नाकाय साबामिल्यतित के पीछे भी, उसे आप देवी और मानवीय कहें अथवा धामिक और सामाजिक कहें, अथवा आध्यान्मिक और मात्र मनोर॑जनकारी দাই--নাপলাসা कत दासक स्वभाव हे छिपा होता है। इसमें भी वही बात छामू होती 21 হল सम्बन्ध में दूसरे महत्वपूर्ण उदाहरणों की भी चर्चा की जा सकती है। आनन्द और प्रकाण ही ताटक का सार है। नाटक में उन्हीं घटनाओं का समावेश होता




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