सामाजिक समस्याएँ | Samajik Samsyayen

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Samajik Samsyayen by राम आहूजा - Ram Ahuja

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 सामाजिक समस्याएं, अवधाएणा और उपागम भिनता्य निम्नलिखित चार कारकों से समझाई जा सकती हैं; - (৪) उदासीनता का रुद्ध. कई लोग किसी समस्या के प्रति यह सोचकर उदासीन रहते ८ (५ এ च <~ =! हैं कि उनको वह प्रभावित नहीं करती । कभी कभी पारिवारिक तनाव और नौकरी के दबाव जैसी उनकी अपनी समस्याएँ उन्हें इतना व्यस्त रखती हैं कि दूसरों को प्रभावित करने वाली बातों में रुचि लेने के लिये उनके पास समय ही नहीं होता 1 वे उसी समय उत्तेजित होते हैं और समस्या में रुचि लेना प्रारम्भ करते हैं जब उनके स्वार्थ फंसते हैं। झ्रग्यवादः कुछ व्यक्ति भाग्यवाद में इतना अधिक विश्वास रखते हैं कि वे सब बातों के लिये भाग्य को उत्तरदायी मानते हैं। ग़रैबी और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं को वे दुर्भाग्य और पिछले कार्यों का फल मानते हैं 1 इसलिये वे दुर्भाग्य को चुपचाप सहते रहते हैं और किसी चमत्कार के होने की प्रतीक्षा करते रहते हैं । निहित स्वार्थ. कुछ व्यक्ति विद्यमान समस्याओं में इसलिये रुचि नहीं दिखाते क्यों कि उनके रहते उनके स्वार्थ सिद्ध होते हैं। वे अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर समस्या को हल से परे बताते हैं औरठसके निवारण के लिये प्रयल करने को समय फा अपव्यय कहते है 1 विशेष क्ञान का अभावे. कु व्यविति समस्या के प्रति चिन्तित दते हुये भी ठसरमे यह सोचकर रुचि नहीं लेते कि जब तक लोग अपनी मनोवृत्ति और मूल्यों को नहीं बदलते तब तक उसका निवारण असंभव है। परिवर्तन करने से पहले क्‍यों कि दृष्टिकोण में परिवर्तन होना आवश्यक है,वे उस समस्या के हल की वैकल्पिक संभावनाओं को ढूँढने के प्रति उदासीन रहते हैं । दहेज प्रथा हमारे समाज की एक रेसी ही समस्या है । कुछ लोगों में सामाजिक समस्याओं के बारे में गलत, अविश्वसनीय और सतही ज्ञान या भ्रामक थारणाएं होती हैं। हम इस प्रकार की आठ भावनाएं बता सकते हैं. (9) यह सोचना गलत है कि सामाजिक समस्याओं के स्वरूप के बारे में सब लोगों में सहमति है । उदाहरणार्थ कुछ लोग सोचते हैं कि मादक द्रव्यों का सेवन भारत की एक सामाजिक समस्या है, जबकि कुछ और लोग कहते हैं कि यह सामाजिक समस्या नरं मानी जा सकती क्योकि देश के विभिन भगे म किये गये आतु भविक अध्ययन ये बताते हैं कि मादक द्र॒व्यों का सेवन बहुत कप है इसी प्रकार भारत में स्वतंत्रता के बाद हृप्जिनों को मुक्ति के लिये किये गये उपायों के कारण कुछ व्यक्ति अस्पृश्यता को अब सामाजिक समस्या नहीं मानते जब कि दूसरों की दृष्टि में यह अभी भी एक सामाजिक समस्या है । ये ठन हरिजनों के उत्पीड़न और उनकी पिटाई की बात करते हैं जिन्हें सिर्तबर,1988 में राजस्थान के नाथद्वाय मंदिर में प्रवेश से रोका गया था और जिससे धुब्य होकर भारत के पूर्व




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