कबीर साहेब की शब्दावली भाग - 1 | Kabir Saheb Ki Shabdavali Vol. - I

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Kabir Saheb Ki Shabdavali Vol. - I by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है! कबीर साददेव ने कभी किसी प्रचलित हिन्दू या मुसलमान मत का पत्त नहीं किया बरन समेँ का दोष बरावर दिखलाया । उन का कथन है :-- हिन्दू कहत है राम हमारा . मुसलमान रहमाना ! श्यापस में दोउ लड़े मरत हे , दुविधा मेँ लिपटाना ॥ घर घर मंत्र जो देत फिरत है . महिमा के श्रभिमाना | गुरुवा सहित शिप्य सब छूमे , श्रंत काल पछ़िताना | कहते है कि रामानंद स्त्रामी ने जो कर्मकांड पर भी चलते थे पक वार पते पिता के श्राद्ध के दिन पिंडा पारने को कवीर साहेब्र से दूध मेंगाया ।' कबीर साहेब जाकर एक मरी गाय के मुह में सानी डालने लगे । यदद तमाशा देख कर उन के गुर-भाइयेंँ ने पूछा कि यह-क्या कर रहे दो मरी गाय केसे सानी खायगी ! क्वीर साहेव ने जवाब दिया कि जैसे हमारे गुरुजी के मरे युरपा पिंड खरायेंगे । मांस, मद्य चरन दर प्रकार के नशे का कदीर साहेव।ने श्पनी वानी में निषेद किया है। कबीर सादेव ज्ुलाहा के घर में तो परी थे ही श्र श्राप भी कपड़ा चुनने का काम करते थे । वह' य़दस्थ झाधम में थे, श्रीर भेपों के डिम्व पाखंड और ध्रहंकार को बहुत निंदनीय कहा है। कबीर सादेव की स्त्री का नाम लोई श्र बेटे श्रौर बेटी का कमाल श्र करमाली था | किसी २ प्रंथकारोँ का कथन है कि कचीर साहेब चालव्रह्मचारों थे श्रौर कभी ब्याह नहीं किया, एक मुर्दा लड़के श्र लड़की फो जिलाकर उनका नाम कमाल श्रौर कमाली रक्खा श्रौर उनके . पालन का भार लोई को जो उनकी चेली थी सैँप दिया पर यह ठीक नहा जान पड़ता । जो कुछ हो! लोई कचीर साहेव की सच्ची श्रोर उँचे दूजे को भक्त थी । एक चार का ज़िकर है कि क्वीर साहेव ने किसी खोजों को भक्ति का उदादरण दिखाने के लिये श्रपने करगह में जहाँ वह लोई के साथ दोपहर का ताना चुन रहे थे धीरे से ढरकी अपनी बेंदोली में छिपा ली श्रौर लोई से कहा कि देख ढरकी गिर गई है उसे ज़मीन पर खोज । वह उसे तुर्त दँढ़ने लगी श्राख़िर को हार कर काँपती हुई उसने श्रज़ की कि नहीं मिलती । इस पर कवीर साहेव ने जवाब दिया कि तू पागल है रात के समय बिना दिया वाले ढूढ़ती है कैसे मिले । 'झपने स्वामी के सुख से यह वचन खुनतेही उस को सचमुच पेसा द्रसने लगा कि श्रैँचेरा है, बत्ती जलकर दुंढ़ने लगी जब कुछ देर हो गई कवीर सादेव ने




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