त्रिलोकसार: | Triloksarh:
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
444
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लोकसामान्याधिकारः ।
छवणं । “अंतायिसूयिजोग्गं संदद्धगुणितु दुप्पडिं किच्चा तिगुणं द्हकर-
णिगुर्ण बादरसुहमं फल॑ बठये ” अनेनोक्तप्रकारेण लवणांबुधिसूक्ष्मफलं 1
चतुस्स्रं क्थामिति चेद्स्य वासना दृश््यते । ठवणांवधिवलयं ऊर्ध्व छित्वा
रुंद्र (२ ल. ) प्रमाणन विषमचतुर्भुज॑कृत्वा “ विक्खंभवग्ग ” इत्या-
दिना मुखसुकष्मफले । मूमिसुक्ष्मफ्ल वानीय मुखमुम्योस्संस्थाप्य मुख-
जि सार्धमिति मध्यफलमानीय ह, £, ले १० मध्ये संस्थाप्य उपारतिन-
ऊर्ध्चे छित्वा चतुरख्रार्थ व्यत्यासेन संस्थाप्य समानछेदेन मेंलनं कुत्वा
तिंति एवं ६ ल. ६ ल. १०५ रुद्रार्धि १ ल. गागिते सति “ वर्गराशे-
कारभागहारा वर्गात्मका एवं भवंति ” इति न्यायेभ गुणित सति चतुरखे
11६ छल ६ ढछल १० । एतावच्यतुरस्रसुष्मफलस्य एकयोजनबृ्तेकुंडे
? इ ६ लल ६ लल १० किमिति जेराशिक-
भाग दा है. एवं“ हारस्य हारों स्कूटर
.... २४. ठठ. २४. छठ. पी
् 1 मूठ २४ लल एतावत् २४. ढ़ सहस्रवेघ ९०००
कक रे लल रू ००० ॥ एू०३॥
दुर्शयति;--
1 समहर्द छक्के जलोस्सेगे पंणवीससमयात्ति ।
संपादं करिय हिंदे केसेहिं सागरुप्पत्ती ॥ १०४ ३४
जय
रोमहतं पटेशनलोत्सेके पंचार्विशसमया इति |
संपात हिते केश: सागरोत्पत्ति: ॥ १०४ ॥
जैरोम । प्र केंड हू फरोम ४१०६. कुंड २४ ठठ १००० इति
रोममिगीणित॑ २४ , लठ. १०००, '४१--पटेशाजलोत्सेके
२४ ठल १०१०, ४१० एतावत रोमजछोस्सेके
दतः समया इति वैराशिकं कृत्वा प्रमाणी भूतपटेशैरपहत्थापवर्त्य २५,
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