भगवती चरण वर्मा जीवन और साहित्य | Bhagvati Charan Verma Jivan Aur Sahitya

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सुरेखा पाठक - Surekha Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है फैजीताटी वर्ग के प्रपच की संज्ञा है टी गई। इस मामले मैं नहर जी का त्त देश के लिये अत्यतत लाभदायक रहा। उन्होंनि प्रसव र सैज्ञानिक टुष्डिट के संकीर्णताओँ और रूट्टियों से अत्यन्त साहलिक टक्कर ली। वैज्ञानिक चिंतन :टकौण लिया, धरी निरपेक् जशार्न उसकी चरमपरिणत्ति और भारत मैं मसलमानोँ का आढमन केवल राजनितिक नहीँ था. वह सास्कुत्तिक भी. था। हिन्द और मतलमान एक लम्बे अर तक शिलकर शक नहीं हो सके लैकिन जब दौनों के भाग्य एक टरसरे से बंधे हुथे है तब ते न केवल एक टरसरै के पास आये बल्कि कजा साहित्य, भाषा, वैशशुषा आदि मैं उनका आदान-प्रदान हुआ। यदि शासकों की नीति भड़काने ताली न होती घो निरचय ही दौनों का आपसी प्रैम बढ़ता। पर यह स्पष्ट है कि थे संस्कुत्तियाँ एक ट्रसरैपर बहुत प्रभाव डालने के बाद भी. एक ट्रसरे में घुलमिल न सकी और घुणा और तैमनत्य के तातावरण मैं दो राष्ट्रों के खतरनाक सिद्धान्त का जन्म हुआ। अपनी-अपनी संस्कृति को ही उच्च मानने की भावना ने हिन्ट्र और मुसलमान दौनों मैं ही. सैशय और डिद्वेष को जन्म दिया। दोनों और के साम्प्रदायिक नेता यह भुल गये कि राष्ट्रीय रकता का आध'र धर्म अथवा जाति नहीं तरनु मातुधणि है। गांधी जी ने लौकतत्र के सिद्धान्त और मानवीयता के आधार पर अधक प्रयास रिया कि और मुसलमान मैं चैर न उभरे किन्तु उसके बात भी जगह-जगह कई बार टरे गया। भारत की स्वाधीनता भी दो राष्ट्री के बीच मे” न्ट्र मुसलमान दंगों मे उत्पन्न भीषण रक्‍तपातत के वाततातरण मैं प्राप्त हुईं। आज ज भी. यह समस्या स॒लझ्ी एसी सांस्कृतिक स्थिति मैं वर्माजी अछ्ते न रह सकें। उन्होंने अपनी तलेखनी पॉ का यथार्थ चित्र अपने उपन्यासों मैं चिथ्लि शिया है। स्वाधी नता की प्राप्ति भारतीय समाज ने तुखी जीतन का सुनहरा द्वार सम्मा था किन्तु यह शक कट यधाय है। गाँधी जी के आदठ्गों को सामने रखकर राज- नीतिज्ञॉँ ने जनता को आश्वस्त किया कि देश की शीघ्र उन्नति होगी। चर्तुमुवी के लिये तथा आत्म निर्गर होने के लिये योजनाबद्ध तरीके से ऑधोगी करण 'तिका! 1




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