पूर्व की राष्ट्रिय जागृति | Purv Ki Rashtriya Jagrati
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जितने ही अधिक उपनिवेश होंगे, उतनी ही औद्योगिक उन्नति
सम्भव हो सकेगी । जितनी दी व्यवसायिक उन्नति होगी उतना
द्वी अधिक लाभ होगा, ओर श्रौद्योगिक राष्ट्र को धन प्राप्त होगा ।
यद्यपि उद्योग धंधों की उन्नति से विशेषतः पूजीपतियों को ही
अधिक लाभ था, किन्तु श्रमजीवी वर्ग की भी अवस्था कुछ हद्
तक अच्छी हो गई ।
क्रमशः आगे चलकर जब व्यवसायिक स्पधा और अधिक
बढ़ो तो साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने अपने अधिकृत उपनिवेशों में
अपने माल पर आयात-कर या तो छुड़वा लिया अथवा बहुत
कम करवा लिया । इम्पीरियल-प्रिफ़रेंस ( साम्राज्यांतगत रियायत )
की जो नई नीति प्रत्येक सामाज्यवादी राष्ट्र अपने अधिकृत देशों
में चला रहा है, उसका मुख्य उद्देश्य केवल उन देशों में अपने
माल के लिए बाज़ार सुरक्षित करना है। इस दृष्टि से उपनिवेशों
तथा अधीन राष्ट्रों का किसी भी सामाज्यवादी राष्ट्र के लिए कितना
उपयोग हो सकता है, यह समझ में आ सकता है ।
` जैसे जैसे बड़ी मात्रा में उत्पत्ति होने लगी, भीमकाय मिल
ओर कारखाने स्थापित होने लगे ओर पंंजीपति वग प्रभावशाली
होता गया, वैसे दी वैसे इन पंजोपतियों का प्रभाव श्रपने देश
की सरकार पर बढ़ता गया । बीसदीं शताब्दी में ओद्योगिक
संगठन का एक नवीन सख्रूप प्रगट हुआ । ज्ञिन राष्ट्रों की ओद्यो-
गिक उन्नति हो चुकी थी वहां एकांधिकार ओर ट्रस्ट बनने लगे,
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