आमिद राजचन्द्र | aamid rajchandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
416
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्ष २८ यु ४१द्
४७३. सुबह, पोष बद १० रवि, १९५१.
(१)
विषम संसारबंधन छेदीने खाड़ी नीकञ्या ते पुरुषोने अनंत प्रणाम.
वित्तनी व्यवस्था यथायोग्य नहीं होवाथी उदय आरब्ध विना बीजा सर्व प्रकारमां असंगफ्णु
राखुं योग्य लगे छे; ते एटठे सुधी के जेमनो जोटखाण प्रसंग छे तेजो पण हार भूरी जाय
तो साहू, केमके संगथी उपाधि निष्कारण वध्या करे ठे, अने तेवी उपाधि सहन करवा योग्य
एवं दारु मारूं चित्त नथी. निरुपायता शिवाय कंदैपण व्यवहार करवानु हाक चित्त होय एम
जणातु नथी; अने ञे व्यापारं व्यवहारनी निरुपायता छे तंथी पण निवृत्त थवानी चितना रयां
करे 8, तेम चित्तमां बीजाने बोध करवा योग्य षटठी मारी योग्यता हार मने खगती नथी;
केमके ज्यां सुधी सर्व प्रकारना विषम सखानकोमां समडृतति न थाय त्यांसुधी यथार्थ आत्मन्नान
कषयं जत नथी, अने ज्यासुषी तेम दोय व्याधी तो निज अभ्यासनी रक्षा करवी षटे छे, जने
हार ते प्रकारनी मारी स्थिति होवाथी हुं आम वस्तु छुं ते क्षमायोग्य छे, केमके मारा चित्तमां
अन्य कोई हेतु नथी-
(२)
मिथ्या जगत् वेदांत कहे छे ते खो হু?
४७७४. मुंबई, पोष, ३९७१.
ॐ
जो ज्ञानीपुरुषना दढ आश्रयथी सर्वे्छष्ट एवं मोक्षपद युरुभम छे तो पछी क्षणे क्षणे जात्मोपयोग
सिर करवो षटे एवो कठण मागे ते ज्ञानीपुरुषना दद आश्रये थवो केम सुरुम न होय १ केमके
ते उपयोगना एकाग्पणाविना तो मोक्षपदनी उत्पत्ति छे नहीं. ज्ञानीपुरुषना वचननो दद आश्रय
जैने थाय तेने स्वं साधन सुलभ थाय एवो अखंड निश्चय सत्पुरुषोए कर्यो छे; तो पछी
अमे कहीए छीए के आ वृत्तिओनो जय करवो धटे ठे. ते वृत्तिओनो जयं केम न थई शकेः
आरं सत्य छे के आ दुषम्रकारने विषे सतूसंगनी समीपता के হত आश्रय विशेष जोईए अने
असत्संगथी अत्यंत निवृत्ति जोईए; तोषण मुमुक्षुने तो एम ज घटे छे के कठणमां कठण
आत्मसाधन होय तेनी प्रथम इच्छा करवी, के जेथी सर्वं साधन अस्य कालमां फटटीमूत थाय.
श्री तीर्थकरे तो एर सुधी कष छेके जे ज्ञानीपुरुषनी दा संसारपरिक्षीण शठे ते
शानीपुरुषने परंपराकर्मबंध संभवतो नथी, तोपण पुरुषार्थं सुख्य राखवो, के जे बीजा जीवनो
पण॒ भत्मसाधनपरिणामनो देतु भाय.
ज्ञानीपुरुषने आतमप्रतिवेधपणे संसारसेवा होय नदी, पण प्रारब्धप्रतिर्वधपणे होय एम छतां पण
तेथी निवृत्तवारूप परिणामने पामे एम ज्ञानीनी रीत होयछे; जे रीतनो आश्रय करतां दाल
तरण वर्ष थयां विशेष तेम कयु अने तेमां जरूर आतमदशाने मूलवे एवो संभव रदे तेवो
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