मनोरंजन पुस्तकमाला 46 तर्क शास्त्र | Manoranjan Pustakmala 46 Tark Shastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परोक्षण न्यायः । संक्षेप में जिस विद्या द्वारा परीक्षा वा निर्णय
किया जा सके, वही न्याय है। यद्यपि तकशासत्र के सिद्धांत
बहुत से प्रंथों में पाए जाते हैं, तथापि तकी शास्त्र का सुच्य-
वस्थित विवेचन सब से पहले न्याय और वेशेषिक दर्शन में
ही किया गया है।
गोतम ही भारतवर्ष में तक शाख्र के प्रधान आचार्य समझे
गए हैं। इससे यह अभिप्राय नहीं कि इनके पूर्ण इस विद्या
का अभाव ही था, कितु यह कि इस विद्या को
सुव्यवस्थित रूप देनेवालों मे यह मुख्य और
प्रथम आचार हैं। वेशेषिक হ্হাঁল में तक शास्त्र
के बहुत से सिद्धांत वर्ट॑मान दहै । तकैखंघ्रह, तकां सत, तार्किकः
रक्षा, भाषा-परिच्छेद आदि जो नवीन तक प्रंथ हैं, वे न्याय
ओर वेशेषिक दोनो के ही आधार पर लिखे गए हैं।
गौतम के न्याय सूत्र ई० पूर्व ५४० के लिखे हुए माने जाते
ह । वाट्स्यायन भाष्य जो कि न्याय सूरो पर सव से पहिला
भाष्य है, ४५० ई० पश्चात् लिखा गया बताया जाता है।
भारतवर्ष में गोतम के न्याय की जो टीका-रिप्पणियाँ%& हुई
है, उनमे तक शाख क्रमशः उन्नति पाता गया है! श्रीयुत
डा कूर सतीशचद्र विद्याभूषण ने श्रपने भारतीय तकं शाख के
इतिहास ( सर15६01ए 0 1४1० {0816 ) में भारतीय तक
शारत्र के तीन विभाग किए हैं। प्राचीन काल ই০ एवं ६००
ॐ पुस्तक के द्वितीय खंड में इनकी नामावली दी गह है ।
तक दाख का
विकास
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