अदीठ लिबास | ADEETH LIBAAS
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
874 KB
कुल पष्ठ :
9
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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विजयदान देथा - Vijaydan Detha
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का रोज नये-नये कपड़े पहनने का चाव खत्म
हो गया। दूसरे कपड़े उसकी नजर में चढ़ते
ही नहीं । उसके सब्र का बाँध भर गया । रेशम
पैदा करने में लाखों रुपये फुँक गये । उसके
बाद बारी आयी कातने ओर बुनने की।
इकक््कीस चरखे न् ओर इकक््कीस ही करचघे।
खटपट-खटपट से सारा राजमहल तालमय हो
उठा।
एक दिन आखिर राजा से न रहा गया तो
उसने रानी को मुआइना करने के लिए भेजा ।
तीन घड़ी बाद रानी भागी-भागी आयी।
खुशी के है. 2 बरसाते कहने लगी, “क्या
कपड़ा है ओर कया कारीगरी? मेरी तो अक्ल
ही काम नहीं करती । देवता भी ऐसे कपड़े
के लिए तरसते होंगे। ऐसी बेजोड़ चीज बनी.
है कि आज तक किसी ने देखी-सुनी नहीं
कैम । नजर ही नहीं टिकती | आप कहें तो
दो जोड़ी मैं भी सिला लूँ ।'
राजा की खुशी की सीमा न रही। रानी
के कपड़ों से कहीं ओर देरी न हो जाये । उसे
तसल्ली देते कहा, 'पहले मेरे कपड़े तो बनने
दो । तुम्हारे लिए मनाही थोड़े ही है। दो की
जगह दस बनवा लेना ।'
रानी को जबरन सब्र करना पड़ा ।
रानी के मुँह से तारीफ सुनकर कारीगरों
का जोश बढ गया। रात-दिन काम चलने
लगा। चरखों की भन्-भन् ओर करघों की
खटपट से राजमहल की हवा दरकने लगी ।
एक दिन राजा अचानक मुआइना करने
आरमखाने जां पहुँचा। तमाम कारीगर
अपने-अपने काम में मगन थे । कोई लक्छियाँ
इकट्ठी कर रहा था | कोई टूटे धागे को चुटकी
से जोड़ रहा था। कोई कपड़े के थान को
तहाकर रख रहा था । पर राजा को न लकच्छियाँ
नजर आयी, न धागा, न थान। तो क्या वो
हरामी और मूरख है? रानी ने झूठी तारीफ
थोड़े ही की होगी! न दिखने का कहने पर
सारी कलई खुल जायेगी । हरामी ओर मूरख
को राजा कोन मानेगा!
एक कारीगर उसके पास आकर, थान
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