कहानियाँ नई पुरानी | KAHANIYAN NAI PURANI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
516 KB
कुल पष्ठ :
13
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)था। घर की देख-रेख का जिम्मा उस पर था। जोखू प्यारी के साथ काम में लगा रहता | प्यारी को
पता था - जो काम जोखू को सौंप दिया, उसके बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं | पर जोखू
मालिक लोगों की बात अक्सर टालने की कोशिश करता।
घर की सूरत तेजी से सुधरने लगी। लेकिन इस सब में हालत बिगड़ती गयी तो खुद प्यारी की। उसे
न कपड़ों की सुध रहती, न साज श्रृंगार की। यही नहीं, घर को कम पैसों में चलाने का मतलब था
- केभी कोई नाराज़, तो कभी कोई | एक दिन रूठने की बारी दुलारी की थी। उसने नये कड़ों की
हठ पकड़ी | बहुत समझाने की कोशिश करने के बाद प्यारी को हार माननी ही पड़ी। जैसे ही दुलारी
को कड़े मिले वह दौड़ी हुई गयी और अंदर बैठे मथुरा को दिखाने लगी। प्यारी दरवाज़े की आड़ में
छिपी उनको देखने लगी | दुलारी उससे तीन ही साल छोटी थी | पर दोनों की हालत में कितना अंतर
था। उसकी आंखें प्यार का वह नज़ारा एक टक देखती रहीं |
धीरे-धीरे समय बीतता गया | शिवदास भी चल बसा। मथूरा और दुलारी के तीन बेटे हो चुके थे |
प्यारी बच्चों पर अपना सारा प्यार लुटाती | उनके लिए नये कपड़े लाना, स्कूल की किताबें खरीदना
- सब वही करती। पर हां, खिलौने लाने की जिम्मेदारी थी जोखू पर। जब भी किसी नये खिलौने
की मांग होती, जोखू कहता -- “मालकिन आप परेशान न हों। मैं बाजार ले जाकर दिलवा दूंगा।“
एक दिन घर बिल्कूल ही खाली हो गया | मथुरा, दुलारी और बच्चे शहर चले गये। प्यारी ने उन्हें
रोकने को बहुत कोशिश की | पर मथुरा ने साफ कहा - “गांव में रखा ही क्या है। हम आपकी बहुत
आये | जोखू भी कुछ कह नहीं सका। चुपचाप उनको जाता देखता रहा |
अब घर में दो ही लोग थे- प्यारी और जोखू। कई दिन तक प्यारी सुनसान घर में बेहोश सी पड़ी
रही | जोखू कहता -“मालकिन, उठो, मुंह-हाथ धोओ, कुछ खा लो । कब तक इस तरह पड़ी रहोगी?”
जोखू की ये बातें सुनकर प्यारी झुंझलाने लगी। उसे झिड़क देने को जी चाहता । पर फिर उसे बुरा
लगता इसमें जोखू का क्या दोष | वह भी तो घर का हिस्सा ही था - उसे कितना दुख होगा।
धीरे-धीरे जिन्दगी नया मोड़ लेने लगी | खेती का सारा भार प्यारी पर था। जोखू ने उसका पूरा साथ
दिया | दोनों दिन भर खेती के काम में जुटे रहते।| खरबूज बोये थे। वह खूब फले और खूब बिके |
प्यारी गें भी बदलाव नज़र आने लगा। वह साफ-सुथरे कपड़े पहनने लगी | उसने अपने गिरवी रखे
गहने छुड़ाये | खाना भी समय से खाने लगी | जोखू में अलग तरह का बदलाव आ रहा था। वह खेती
का काम मन लगाकर करने लगा था|
एक शाम प्यारी ने जोखू से कहा - “तुम तो कुछ ज़्यादा ही मेहनत कर रहे हो। कहीं बीमार पड़
गये, तो ? जोखू बोला - “बीस साल में कभी सिर तक तो दुखा नहीं | आगे की नहीं कह सकता [*
प्यारी ने कहा - “मैं क्या जानू? तुम्हीं आये दिन बीमारी लिए बैठे रहते थे। जोखू झेंपता हुआ बोला
- “वे बातें तब थीं, जब मालिक लोग चाहते थे कि इसे पीस डालें | प्यारी ने कुछ न कहा, पर उसकी
बात मन में बैठ गयी। वह बोली - “तुम पहर रात से पहर रात तक खेत में रहोगे। अकेले मेरा जी
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