आज़ादी की नुक्ती भाग 2 | AZADI KI NUKTI PART 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बैठा आस लगाए जल्दी साल पूरा हो जाए 1 दीपक मेहता मेरे सब दोस्त सायकिल चलाते थे। तो मेरा भी मन होता था कि मैं भी सायठिल चलाऊँ। एक दिन मैंने मम्मी से कहा, “मम्मी मुझे भी सायकिल दिललाओ। मम्मी ने कहा, तू पहले सायकिल चलाना तो सीख ले। मैंने कहा, किससे सायकिल चलाना सीझूँ और कहाँ चलाऊँ? कोई भी तो नहीं सिखाता। मम्मी बोली, तू अपने पापा से बात करना। मैंने कहा, ठीक है, मैं अभी खेलने जा रहा हूँ। शाम को मैं घर आया तो पापा आ गए थे। मैंने कहा, पापा हमें सायांकल दिलाइए। पापा ने कहा, तू अभी छोटा है। तुझसे सायकिल नहीं चलेगी। मैंने कहा, नेरे सभी दोस्त भी तो छोटे हैं। फिर वो कैसे सीख गए? पापा को हार माननी पड़ी। कहा, अगले साल दिला दूँगा जब तू चौथी में चला जाएगा। मैंने पापा की बात मान ली। मुझे छगता कब जल्दी-से चौथी में आऊँ और सायकिल आए। धीरे-धीरे साल ख़त्म हुआ और मैं चौथी में चला गया। मैंने पापा से कहा, मुझे सायकिल दिलाओ। हज




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