हिंदी चेतना ,अंक -68, अक्टूबर - दिसम्बर 2015 | HINDI CHETNA- MAGAZINE - ISSUE 68 - OCT-DEC 2015

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहानी संपर्क: ए-10, बसेर, ऑफ दिन-क्वारी रोड, देवनार, मुंबई-400 088 मोबाइल: 9819162949 मुंबई की सेवानिव॒ृत शिक्षिका और कथाबिम्ब पत्रिका की सम्पादिका मंजुश्री की कहानियाँ, कविताएँ, लेख, साक्षात्कार एवं लघुकथाएँ भारत के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हें। कई कहानियाँ मराठी में अनूदित। ईमेल: ॥(11191/17|/0(8५/9100.0017 संपर्क: ए-10, बसेर, ऑफ दिन-क्वारी रेड,देवनार, मुंबई-400088 मोबाइल: 9819162949 16 हिला अक्टूबर-दिसम्बर 2015 बस, अब बहुत हुआ ! मंजुश्री घर से निकलते-निकलते बेवजह देर हो गई थी। दरअसल रात काफी देर तक जागती रही थी। पिछले कुछ दिनों की भागदौड़ ने नींद न जाने कहाँ उड़ा दी थी। बमुश्किल अल्लसुबह ज़रा सी नींद लगी, तो मस्जिद के लॉउडस्पीकर से आती अज़ान की तेज़ आवाज़ से नींद खुल गई। उठने का मन नहीं कर रहा था पर उठना ही था। किसी तरह जल्दी-जल्दी सुबह के सारे काम निपठयकर आफशा, एस.पी. साहब के ऑफिस जाने के लिए रिक्शा तलाश रही थी। आज पता नहीं क्या माजरा था, कोई रिक्शा या ऑये उस तरफ जाने के लिए तैयार ही नहीं था। वेसे तो रोज़ इस खिलशा स्टेंड पर दो चार खिशेवाले बीड़ी फूँकते हुए दिखाई दे जाते हैं, पर आज जब ज़रूर है तो, न जाने सब कहाँ नदारद हैं ! काफी इंतज़ार के बाद एक रिक्शा मिला, आफ़शा की जान में जान आई। हालाँकि अभी पूरी तरह धूप नहीं निकली थी फिर भी आफशा के माथे पर पसीना चुहचुहा आया था। पसीना पोंछती- पोंछती वह रिक्‍्शे पर बेठ गई। उसी रिक्‍्शेवाले ने बताया कि उस तरफ कोई रैली निकल रही है; जिसकी वजह से कोई रिक्‍्शे वाला या गाड़ी वाला उस तरफ जाना नहीं चाहता। सुनते ही उसका तो दिल धक्क से रह गया। मन हुआ ज़ोर से एक भारी भरकम भद्दी सी गाली देकर अपनी खीज को शांत करे। उसके साथ उसकी छोटी बहन सना भी थी। बड़ी मुश्किल से उसने सना को अपने साथ आने के लिए राजी किया था। वैसे तो वह अकेले ही घर-बाहर के सारे काम निपयती है पर पुलिस कार्यालय में वह अकेले नहीं जाना चाहती थी। यह भी क्या विडंबना है कि हिफाज़त करने वालों से ही हिफाज़त की ज़रूरत महसूस हो। बड़े किस्से सुन रखे हैं उसने इन पुलिसवालों के, पर जाना भी ज़रूरी था। कोई ओर चारा भी तो नहीं ! बड़ी मुश्किल से आज 15 मिनट का समय दिया था उनके पी.ए. ने। लगता है आज की मशक्कत भी जाया जाएगी। पिछले दस दिनों से लगातार चक्कर काट रही है एस.पी. ऑफिस के। सुबह के समय 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक सदर के दफ्तर में तो शाम को 6 बजे से यात के 9 बजे तक सहारागंज स्थित पीली कोठी में उनके निवास स्थान पर साहब से मिला जा सकता है। उनका निवास स्थान भी ख़ासा अच्छा है। दो बार वह वहाँ भी हो आई है। कोठी के निचले हिस्से में उनका दफ़्तर है, काफी बड़ी जगह है। जिसमें मुलाकातियों के लिए सोफे और कुछ कुर्सियाँ भी पड़ी रहती हैं। पहले यह कोठी पीले रंग की थी, बहुत पुरानी अंग्रेजों के जमाने की। अब तो सफेद रंग से पुती है, फिर भी पीली कोठी ही कहलाती है। ऊपर के हिस्से में एस.पी. साहब का निवास स्थान है, चारों तरफ सुंदर बागीचा भी है; जिसमें हमेशा चार-पाँच माली लगे रहते हैं। नरम मखमली घास के किनारे-किनारे बनी क्यारियों में खिले चटक पीले गेंदे के फूल




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