हिंदी चेतना ,अंक -47, जुलाई 2010 | - MAGAZINE - ISSUE 47 - JULY 2010

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जग्यि कैद से आजाद कराने वाला व्यक्ति भी मुसलमान ही था. गुरु गोबिंद सिंह के गहरे दोस्त सूफी बाबा बदरुद्दीन थे, जिन्होंने अपने बेटों और (9०० शिष्यों की जान गुरु गोबिंद सिंह की रक्षा करने के लिए औरंगंजेब के साथ हुए युद्धों में कुर्बान कर दी थी. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की बुनियाद मियां मीर ने रखी थी। इसी तरह गुरु नानकदेव के प्रिय शिष्य व साथी मियां मरदाना थे, जो हमेशा उनके साथ रहा करते थे। रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तों में से एक थे जैसे भिकान, मलिक मोहम्मद जायसी आदि। श्रीकृष्ण के हजारों भजन सूफियों ने ही लिखे, जिनमें भिकान, मलिक मोहम्मद जायसी, अमीर खुसरो, रहीम, हजरत सरमाद, दादू और बाबा फरीद शामिल हैं। जान हमने भी गंवायी हैं वतन की खातिर, फूल लिर्फ अपने ग्रहीदों पे चढ़ाते क्यों हो / राजेन्द्र मिश्र राज ने ॥10:/एजए.णंणाक्षातर11॥153.0011 “जात न पूछो बाबू की! के जरिये भारतीय समाज में व्याप्त बाबू संस्कृति पर मज़ेदार नज़र दौड़ाई. वे लिखते हैं : डेढ़ टन सोना घर में रखने वाला डा. केतन देसाई सच्चे अर्थो में भारत रत्न पाने का हकदार है। उस सोने का बाजार मूल्य 1800 करोड़ है। केतन को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. भारत की कमजोर याददाश्त वाली जनता बड़ी आसानी से मधु कोड़ा और तेलगी दोनों को भूल चुकी है। हर्षद मेहता, हितेन दलाल को भी तो सभी भूल चुके हैं। केतन को भी भूल जायेंगे। सच तो यह है कि जात न पूछो बाबू की। डिपार्टमेंट कोई भी क्‍यों न हो, बाबू एक सरीखे होते हैं। फिर रेलवे में तो कहीं भी जाओ, एक ही शब्द सुनाई देता है बड़े बाबू | फिर चाहे वह बाबू से साहब क्‍यों न बन चुका हो, संबोधन बड़े बाबू का ही मिलता है। छोटा बाबू कौन है, पता ही नहीं चलता। खलासी से लेकर गैंगमैन तक सभी अपने साहब तक को बड़े बाबू इन्फ्रोमिस, टीसीएस, विप्रो और सत्यम जैली महान भारतीय आईटी कम्पनियों ने भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिये अब तक क्या योगदान दिया है ? इन कम्पनियों ने सरकार से जमीनें ली, पानी-बिजली में सबलिडी ली, टैक्‍स में छुट ली, हार्डवेयर आयात करने के लिये ड्यूटी कम करवाई. इतनी महान कम्पनियों ने क्या आज तक भारत के आम लोगों के लिये एक भी मुफ़्त विवर्ति करने वाला हिन्दी ठॉफ्टवेयरट बनाया है 2 या किसी अन्य भारतीय भाषा को बढ़ावा देने के लिये कुछ किया है ? कह जाते हैं। यहां तक कि रेलवे कर्मचारी सेवानिवृत्त हो कर भी आजीवन बड़े बाबू बना रहता है। जनगणना में जाति पूछी जाये या नहीं इस मुद्दे पर घुघूती बासूती ने 109:/श/पशापा025प71.0102590.007 ब्लॉग पर लिखा - “मुझपर भी चढ़ रहा जाति का बुखार !” वे लिखती हैं कि जनगणना में कोई मुझसे मेरी व मेरे परिवार की जाति पूछेगा तो क्या कहेगी ? जिस जाति में मेरा जन्म हुआ, जिससे विवाह किया या कोई जाति नहीं ? तीन दशक से कुछ कम वर्ष पहले जब हमसे बिटिया के स्कूल दाखिले के समय जाति का नाम भरने को कहा गया था तो हमने उसे खाली छोड़ दिया था। प्रिन्सिपल ने बुलाया और भरने को कहा तो हमने कहा था कि हम नहीं भर सकते, क्योंकि उसकी कोई जाति नहीं है। सच में जब दो जाति वालों की संतान होती है तो वह जातिविहीन होती है। जाति धर्म तो है नहीं कि आप कोई भी अपना लें। यदि हममें से एक की जाति उसे देनी ही है तो फिर यह जातिवाद कभी खत्म नहीं होगा। सुरेश चिपलूनकर 110:/09102.5प्राट३॥॥०।ंएप्राप्व.००॥ ने हिन्दी के विकास भारतीय कंपनियों के योगदान को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाया : हिन्दी हेतु आईटी इंडस्ट्री और इन्फ़ोमिस का क्‍या योगदान है ? वे लिखते हैं - 'बाराहा' के वासु, 'अक्षरमाला' के श्रीनिवास अन्नम, 'कैफ़े-हिन्दी' के मैथिली गुप्त, 'लिनक्स हिन्दीकरण' के महास्थी खि रतलामी, 'गमभन' के ओंकार जोशी, 'प्रभायाक्षी' के बालेन्दु शुक्ल, “वेबदुनिया' के विनय छजलानी, हिन्दी ब्लॉगिंग और हिन्दी कम्प्यूटिंग को आसान बनाने वाली हस्तियाँ अविनाश चोपड़े, रमण कौल, आलोक कुमार, हग्रिम जी, देबाशीष, ई-स्वामी, हिमांशु सिंह, श्रीश शर्मा और इन जैसे कई लोग हैं. ये लोग कौन हैं ? क्या करते हैं ? कितने लोगों ने इनका नाम सुना है? मैं कहता हूँ, ये लोग 'हिन्दी' भाषा को कम्प्यूटर पर स्थापित करने के महायज्ञ में दिन-रात प्राणपण से आहुति देने में जुटे हुए साधक हैं, मौन साधक । लेकिन इन्फ़ोतिस, टीसीएस, विप्रो और सत्यम जैसी महान भारतीय आईटी कम्पनियों ने भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिये अब तक क्‍या योगदान दिया है ? डॉलरों मे कमाने वाली और अपने कर्मचार्यों को लाखों के पैकेज देकर समाज में एक असंतुलन पैदा करने वाली इन कम्पनियों ने सरकार से जमीनें लीं, पानी-बिजली में सबसयिडी ली, टैक्स में छूट ली, हार्डवेयर आयात करने के लिये ड्यूटी कम करवाई, यहाँ तक कि जब रुपया मजबूत होने लगा और घाटा (?) बढ़ने लगा तो वहाँ भी वित्तमंत्री ने दखल देकर उनका नुकसान होने से उन्हें बचाया। तात्पर्य यही कि इतनी महान कम्पनियों ने क्या आज तक भारत के आम लोगों के लिये एक भी मुफ़्त वितरित करने वाला हिन्दी सॉफ्टवेयर बनाया है ? या किसी अन्य भारतीय भाषा को बढ़ावा देने के लिये कुछ किया है ? क्या एक आम भारतवासी को यह गर्व नहीं होना चाहिये कि वह जिस सॉफ़्टवेयर पर काम करता है, वह उसी के देश की सबसे बड़ी कम्पनी ने जुलाई-सितम्बर 2010 15 हा




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