हिंदी चेतना ,अंक -61, जनवरी -मार्च 2014 | HINDI CHETNA- MAGAZINE - ISSUE 61- JAN-MAR 2014
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
65
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाए ?'
'मेरे बाग !'
* क्यों कहीं कोई ग़लती हो गई ? तुम्हारी फ्लॉरिस्ट
शॉप से लाई हूँ।' फटी-फटी दृष्टि से श्याम कविता
को ताकता रह गया।
“तुम - तुम इतने छोटे हो सकते हो, में सोच
भी नहीं सकती थी श्याम ।' आवेश में कविता की
वाणी रुद्ध हो गई थी।
'क्या हुआ, कविता आराम से बैठो। ये पानी
पी लो।'
श्याम के हाथ में पकड़ा पानी का गिलास
कविता ने झटक कर दूर फेंक दिया।
“तुम बहुत बड़े फ्लॉरिस्ट हो न, श्याम तुम्हारे
गार्डेन में न जाने कितने माली काम करते हैं। यू
चीट , लॉयर।'
“मुझे माफ कर दो कविता।'
“किस बात की माफ़ी माँग रहे हैं डॉ. श्याम ?'
व्यंग्य कविता के ओठों पर फैल गया था।
“यही कि मेरी कोई फ्लॉरिस्ट शॉप नहीं में एक
गरीब इंसान हूँ।'
“ठीक कह रहे हो, डॉ. श्याम। तुम एक
महत्त्वाकांक्षी, कर्मठ और मेरे ख्याल से एक महान्
इंसान के बहुत गरीब बेटे हो ।'
“मेरी बात समझने की कोशिश करो कविता -
तुम इतने बड़े घर की लड़की हो, भला कैसे बताता
मेरे पिता एक इंस्टीट्यूट के हेडमाली हैं - तुम्हें खो
देने का साहस नहीं कर सका, मुझे माफ़ कर दो,
कविता।'
“जिस व्यक्ति ने मिट्टी से इतने सुन्दर फूल उगाए,
अपने ही बीज को सँवारने में कहाँ गलती कर गया
2 एक लड़की को पाने के लिए अपने पिता को ही
नकार दिया, डॉ. श्याम ?'
“कविता।'
'नहीं श्याम, इसके लिए कोई एक्सप्लेनेशन
नहीं चलेगा। काश ! तुमने बताया होता, तुम अपने
पिता के सपनों के गुलाब हो । मिट्टी में गिरी उनकी
पसीने की बाूँदों ने तुम्हाग पोषण किया है, तो मैं
तुम्हें सिर-माथे लेती, पर आज तुम अपने झूठ के
कारण मेरी निगाह में इतने नीचे गिर गए हो।'
बोलते बोलते आवेश से कविता का चेहरा तमतमा
आया था।
“मैं प्रायश्वित करने को तैयार हूँ, मुझे सज़ा दो,
कविता।'
हित ' जनवरी-मार्च 2014
तुम्हारी सज़ा यही है, डॉ. श्याम, जिसे तुमने
चाहा, वह तुम्हें कभी न मिले। मैं हमेशा के लिए
जा रही हूँ।'
*ओ! क्या ये तुम्हारा मुझसे अलग होने का
बहाना नहीं, कविता ? मेरी सच्चाई जान, मुझे
स्वीकार करने का तुम्हारा साहस शेष नहीं रह गया
है।' बौखलाहट में श्याम को यही जवाब सूझा था।
श्याम के वाद -प्रतिवाद के लिए कविता रुकी
नहीं थी। यू के. की एक छात्रवृत्ति ले, वह शहर
छोड़ चली गई थी। एक उसाँस के साथ श्याम ने
अपनी कहानी खत्म की थी।
“ओह ! शायद कविता कहीं जल्दबाजी कर
गई। काश ! मैं उससे मिल पाती शिवानी गम्भीर
हो उठी थी।'
“नहीं ग़लती मेरी ही थी, जिस पिता ने मुझे
यहाँ तक पहुँचाया, उसे भुला दिया। बारहवीं तक
वजीफ़ों के सहारे पढ़ा, मेडिकल की प्रवेश-परीक्षा
में क्वालीफाई करने पर बाबू की आँखों में ढेर सारे
गुलाब खिल आए थे। इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल के
पाँवों पर सिर धर दिया था बाबू ने।'
“हमार बेटवा डॉक्टर बनी साहेब, आपकी मदद
चाही। जिनगी भर गुलामी कर लेब, मुला एकर
मदद कर दें साहेब ।' बाबू की सेवा ध्यान में रख,
प्रिंसिपल साहब ने इंस्टीट्यूट की ओर से मेरी पढ़ाई
की व्यवस्था कराई थी।
इंटर्नशिप के बाद सब आसान होता गया था,
जितने पैसे मिलते काम चल जाता था।
“तुमने यह सब कविता को क्यों नहीं बताया,
श्याम ?'
“वही तो मेरा अक्षम्य अपराध बन गया,
शिवानी | संयोग इसे ही तो कहते हैं, शिवानी के
कज़िन की सगाई उसी इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल की
बेटी से ही होनी थी। शायद लाल लिली के फूल
देखते ही उन्हें वह पहिचान गई थी, प्रिंसिपल साहब
ने जब कविता को सबसे इंट्रोड्यूस कराया तो बाबू
के बेटे का नाम गौरव से लिया गया था।'
'हमारे हेड माली का बेय वहाँ सर्जन है, डॉक्टर
श्याम इनका असली फूल तो वही है।'
“जरा सोचो, कविता को यह कितना बड़ा धक्का
लगा होगा, शिवानी ।'
“तुम्हारे पिताजी को इस बारे कुछ पता नहीं है,
श्याम ?'
“बस इतना जान सके, मेरे साथ की लड़की थी
कविता। उसने उन्हें बहुत आदर-मान दिया था।
लौटते समय बाबू के पाँव छू, उन्हें चौंका दिया था।
उसे आशीषते बाबू नहीं थकते, शिवानी।'
“पर इस तरह कब तक चलेगा श्याम ?'
' अपनी भूल का प्रायश्चित कर रहा हूँ। बाबू के
लिए एक छोटी सी फूलों की दूकान शहर में खोल
दी है। बाबू दूकान के प्रति बहुत उत्साहित हैं, पर
मेरी उदासीनता उन्हें बहुत कष्ट देती है, शिवानी।'
'तो उन्हें तुम असलियत क्यों नहीं बता देते,
श्याम ?'
“वह बता पाने के लिए कविता का इंतज़ार है,
शिवानी।'
“तुम समझते हो वह वापिस आएगी ?'
“वह ज़रूर आएगी शिवानी, मैं उसे अच्छी तरह
से जानता हूँ।' दृढ़ स्वर में श्याम ने उत्तर दिया था।
' भगवान तुम्हारा विश्वास सच करें, श्याम।'
श्याम के हाथ पर अपना हाथ धर शिवानी ने
आशीर्वाद सा दिया था।
छाए ॥ ॥ऐश1।३पं०ाओं
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वृष: 905-648-7258
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