हमने रोबोट्स के बारे में कैसे सीखा ? | HOW DID WE KNOW ABOUT ROBOTS?

HOW DID WE KNOW ABOUT ROBOTS? by अरविन्द गुप्ता - ARVIND GUPTAआइज़क एसिमोव -ISAAC ASIMOVपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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आइज़क एसिमोव -Isaac Asimov

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपयोगी रोबोट वो होंगे जो जटिल आदेशों का पालन कर सकें। इन आदेशों को समय-समय पर अदला-बदला जा सके जिससे कि रोबोट अभी कुछ काम करे और बाद में कोई अन्य कार्य करे। वेसे घड़ी से पुर्जों से बने यंत्रों को और जटिल बनाया जा सकता है। 1822 में एक अंग्रेज चार्ल्स बेबिज (1792-1871) ने घडी के पुजों से बने एक उपकरण की कल्पना की जिसमें गियर, लीवर और अन्य पुर्ज हों, जो इतना जटिल हो कि आदेश देने पर वो किसी भी प्रकार की अंकगणितीय समस्या को हल कर उसका उत्तर प्रिंट कर सके। उसने एक विशाल गणक की कल्पना की जिसे आज हम कम्पयूटर के नाम से जानते हैं। उसने एक ऐसे कम्पयूटर की सपना देखा जो अंकों को याद कर संजो कर रख सके। यानि उसकी एक “मेमोरी” हो। उसका सपना ऐसे कम्पयूटर का था जो आदेश देने पर किसी भी समस्या का हल खोज सके। और इन आदेशों को कभी भी बदला जा सके। पर उसके जीवनकाल में यह सम्भव नहीं हो पाया। कई कारणों से बेबिज की मशीनों ने काम नहीं किया। बेबिज बहुत तुनकमिजाज व्यक्ति थे और जल्दी ही धेर्य खो बैठते थे। वो हर समय नए, और नए सपने संजोते रहते और बेहतरीन से बेहतरीन कारीगरी की मांग करते। इसलिए मशीन बनने से पहले ही उनके लिए पुरानी हो जाती थी और वो पुरानी मशीनों को पूरी तरह खोलकर नई मशीनों के निर्माण में लग जाते थे। नतीजा यह हुआ कि अंत में वो कंगाल हो गए और नई मशीनें बनाने के लिए उनके पास पैसे ही नही बचे। शायद उनकी मशीन बनी भी होती तो भी वो काम नहीं करती। मशीन में लगे पहिए, गियर, लीवर आदि पुजों का एक-दूसरे के साथ बहुत सावधानी से जुडे होना जरूरी था नहीं तो वो काम नहीं करते, या फिर गलत काम करते। बैबिज के जमाने में सही माप के पुर्जे बनाना और उन्हें आपस में फिट करना बहुत मुश्किल




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