गाँधी मार्ग - अगस्त 2012 | GANDHI MARG AUG 2012
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
445 KB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अनुपम मिश्र -ANUPAM MISHRA
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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गांधी-मार्ग
सन् 1885 में लुधियाना दरबार में आए अफगानिस्तान के शाह अब्दुर्रहमन
ने उन्हें इल्म का बादशाह बताया और एक शाल और अशरफियां भेंट करते हुए
खुदा का शुक्र मनाया था कि उनसे भेंट हो सकी । इसके तीन साल बाद ईरान
के शाह भारत आए तो उन्होंने कलकत्ता में एक गोष्ठी में कहा कि उनकी यात्रा
के दो ही मकसद हैं- पहला, वायसराय से मिलना और दूसरा, मुंशी नवलकिशोर
श्रमिक-मालिक संबंधों में
यह प्रेस अपने समय से
कहीं आगे था। इस प्रेस ने
विभिन्न कर्मचारी कल्याण
योजनाओं को लागू करते हुए
अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों
के लिए पेंशन तक की व्यवस्था
की थी। मृत्यु का शिकार होने
वाले कर्मियों के परिवारों को
भत्ता दिया जाता था।
से। जर्मन विदुशी डॉ. उल्राइक स्टार्क तो
मुंशीजी को पुस्तकों के स्वराज का अधिष्ठाता
ही मानती हैं। लेकिन मुंशीजी के बारे में कोई
भी चर्चा तब तक अधूरी रहेगी जब तक
उनकी निभाई राजनीतिक भूमिका का जिक्र न
किया जाए। यों वे जीवन भर कांग्रेस के
विरोध में रहे, लेकिन सन् 1888 में सर सैयद
अहमद ने जब कांग्रेस को हिन्दू संस्था'
घोषित कर दिया तो मुंशीजी ने उनसे कहा
कि वे कांग्रेस के विरोध को सांप्रदायिक मोड़
देकर हिन्दू-मुस्लिम भेद बढ़ाने से बाज आएं।
19 फरवरी, 1895 को सीने में दर्द की
शिकायत के बाद मुंशीजी को हजरतगंज
डिस्पेंसरी (लखनऊ) ले जाया गया जहां उनका
देहांत हो गया। इलाहाबाद में संगम तट पर उनकी अंत्येष्टि हुई। उसी के साथ
एक युग का भी अंत हो गया। 19 फरवरी 1970 को उनकी 75 वीं पुण्यतिथि
मनाई गई । उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री
श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उनको पुराने व नए ज्ञान के बीच समन्वय का सेतु
बताया था और कहा था कि देश और दुनिया की कई भाषाएं उनकी क्रणी हैं।
श्री कृष्णप्रताप सिंह ने लंबे समय तक
फैजाबाद के एक प्रतिष्ठित अखबार में काम किया
है। अब स्वतंत्र रूप से सामाजिक विषयों पर लिखते हैं।
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