छींका-छींक | CHEENKA-CHEENKEKLAVYA

CHEENKA-CHEENKEKLAVYA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर बार जब वह छींकता तो आसपास के सब खिड़की-दरवाज़े खड़खड़ाकर हिल जाते थे। छुटनक्कू खूब हँसा | ज़मीन पर लोटकर, हाथ-पाँव उछाल-उछालकर हँसता रहा | इतना हँसा कि वह भूल ही गया कि उसके हाथों में अभी भी मिर्च लगी हुई थी। हँसते-हँसते उसने अपनी ही नाक पर मिर्च वाला हाथ रख दिया | आक-छीं! आक-छीं! छुटनक्कू भी छींका, आक-छीं। आक-छीं! हर बार जब उसे छींक आती तो उसका पूरा शरीर हवा में उछल जाता और बम फूटने जैसी आवाज़ आती। छुटनक्कू और बड़नक्कू एक-दूसरे के सामने इतनी ज़ोर से छींक रहे थे कि अचानक धड़ाम की आवाज़ आई | सबने देखा कि दोनों के सिर धड़ाम से टकरा गए थे। इतनी ज़ोर से टकराए कि उनका छींकना ही रुक गया | छुटनक्कू ने बड़नक्कू की तरफ देखा। बड़नक्कू ने छुटनककू की ओर देखा। वे एक-दूसरे को इतने मज़ेदार दिख रहे थे कि दोनों को हँसी आ गई | वे इतने झटके “--+ से हँसे कि फिर से उनकी छींक शुरू ४ हो गई। वे हँसते रहे और छींकते रहे, हँसते रहे और छींकते रहे | रा 10027 1/20 2 मा .... 1 पे ..' 1 2 ० ऐप 52५:72 धर 110 1 ्थ॒




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