लोमड़ी और ज़मीन | LOMBDI AUR ZAMEEN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मल दी रह गए 3 ₹ छिटर जहर ८-६० बैक मत, 9 - २ रेफ फेस एंथर “कंद्रोल दुकान की शक्‍्कश हेमलता साहू एक दिन मैं पढ़ रही थी। उस दिन 29 तारीख थी। मम्मी बोली जाओ और पता लगाओ कि कंट्रोल शक्कर की दुकान खुली है कि नहीं | मैंने कहा, मैं क्यों जाऊँ भैया नहीं जा सकते | तो वे बोलीं, बेटी वो तो कॉलेज गया है, मालूम नहीं कब लौटे। थोड़ी दूर ही तो है। चली जा | मैं कॉपी पुस्तक बन्द करके चप्पल पहनकर जाने लगी तो वे बोली, थैली और परमिट, पैसे भी ले जा नहीं तो बार-बार आएगी। सो मैं थैली में परमिट रखकर और पैसों को गुट्ठी में रखकर चल दी। हेमलल। साह, आठवीं, कन्नौद, देवास, म. प्र.। वकमक फरवरी, 1986 में प्रकाशित। श्वेत्ता जोशी, सातवों, पिपरिया, मप्र. । चकनक जनवरी, 1987 में प्रकाशित! 10




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