हिंदी चेतना ,अंक -62, अप्रैल - जून 2014 | HINDI CHETNA- MAGAZINE - ISSUE 62 - APR-JUNE 2014
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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विभिन्न लेखक - Various Authors
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जय वर्मा का १९७१ से ब्रिटेन में आवास।
“काव्य रंग नॉटिंघम ' की अध्यक्षा। “प्रवासी
टुडे' पत्रिका की यू के. प्रतिनिधि। 'सहयात्री हैं
हम काव्य संग्रह। हिंदू मंदिर नॉटिंघम ' पत्रिका
की भूतपूर्व संपादिका। भारत, यूएसए तथा ब्रिटेन
की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं काव्य संकलनों
में हिन्दी कविताओं , लेख एवं कहानीयाँ
प्रकाशित। १९७६ से १५ वर्षों तक हिन्दी शिक्षण
तथा हिन्दी पाठ्यक्रम का विकास एवं अनुवाद।
ईमेल: [४एशग189777७09ए०100.00.प
हित अप्रैल-जून 2014
सात कदम
जय वर्मा
“कभी हमारे भी दिन बदलेंगे । सभी लोग छुट्टियाँ
मनाने दूसरे देशों मे घूमने-फिरने के लिए जाते हैं,
और एक हम हैं कि इंडिया भी नहीं जाते !... जब
से इंडिया छोड़ा एक बार भी घर वापिस नहीं गए।!
प्रिंस को अब यह सुनने की आदत सी पड़ गई थी,
सिम्मी की इन बातों का उस पर कोई असर नहीं
होता था। गर्दन उठाकर चश्मा संभालते हुए धीरे से
बोले, ' केवल घूमने के लिए हम इंगलैंड नहीं आए
थे। यहाँ आना मेरे इंजीनियरिंग कैरियर के लिए
महत्त्वपूर्ण था। रुड़की से इंजीनियरिंग की डिग्री
लेने के बाद अगर मैं भारत में ही बस गया होता तो
शायद मैं अब तक एक्जीक्यूटिव इंजीनियर बनकर
रिटायर होने की सोचता होता । नए चेलेंजज़, उन्नति
तथा नए अनुभवों के लिए ही मैं यहाँ आया था। न
जाने कितने प्रोजेक्ट और बाँध बनाने के काम मैं
अपने देश के लिए करता। सिविल इंजीनियर बन
जाना उन दिनों भारत में एक सुनहरे पेशे की नींव
थी। देश में नई सड़कें, नए बाँध, ऊँची इमारतें और
बड़े पुल बनने शुरू हो गए थे। पढ़ते समय मेरे भी
कुछ सपने थे। में भी अपने जीवन में उन्नति और
मानवता के लिए कुछ करना चाहता था।'
“कितने दिनों से आप वायदा करते आ रहे हें
कि अंग्रेज़ों की तरह हम भी हॉलिडे में घूमने के
लिए कहीं बाहर गर्म देश जाएँगे। जब हमारी शादी
हुई तब आप काम ढूँढ रहे थे... । नौकरी तो आपको
भारत में भी अच्छी मिल गई थी, लेकिन उन दिनों
विदेश घूमने तथा युवावस्था के जोश में हम अपने
घर वालों और देश को छोड़कर यहाँ बेकवैल,
डार्बिशायर के पीक डिस्ट्रिक्ट में रहने आ गए।
देवदार, चीड़ और ओक के वक्षों से घिरी ये मैटलोक
की पहाड़ियाँ और बेकवैल की ठोस बर्फ से भरी
घाटियाँ जहाँ नवम्बर के महीने से लेकर मार्च तक
पेड़ों पर पत्ते और ज़मीन पर धूप भी नहीं आती।
सुबह अँधेरे में काम पर जाते हैं और अँधेरे में ही
घर लौटकर आते हैं। दिन भी इतने छोटे कि तीन
बजे से ही कार की लाइट्स ऑन करनी पढ़ती हैं।
कोहरे और ठंड़ से सिकुड़ते और ठिठुरते ऊनी गर्म
कपड़ों में लदे हमें सर्दियों के अंधेरे दिन बिताने
पड़ते हैं।' सिम्मी ने शिकायत के लहजे में कहा।
“जब 'नॉर्थ-ईस्ट न््यूकॉसल शिपयार्ड' के
मेनेजमैंट कंसलटेंट का काम छोड़कर मैं पीक
डिस्ट्रिक्ट में बसने के लिए आया था तब मुझे
लगता था कि यहाँ मौसम थोड़ा अच्छा होगा।'
“बिजली से लेकर बैल्डिंग तक के काम में
प्रिंस आपका हाथ सधा हुआ है अत: जीवन निर्वाह
के लिए आप कोई भी इंजीनियरिंग का काम कर
सकते थे। सभी अंग्रेज़ साथी आपको पसन्द करते
हैं, फिर आपने लंदन की ब्रांच में क्यों नहीं काम
लिया? वहाँ मौसम भी अच्छा है और शहर भी
बड़ा। लंदन में रहना मुझे भी अच्छा लगता।'
' आजकल मैं विभिन्न पत्थरों के व्यापार करने
वाली फ़र्म में डार्बिशायर, बक्सटन, मैटलोक और
मेनचेैस्टर इत्यादि शहरों में मेनेजमैंट कंसलटेंट का
काम करने जाता हूँ, यह काम मेरी पसंद का है।
अगर मैं एक दिन की भी छुट्टी ले लूँ, बॉस से
लेकर एडमिन स्टाफ तक सब परेशान हो जाते हैं।'
अगर कभी कोई अंग्रेज़ कह देता, ' हिंदुस्तानी
बड़े ही मेहनती और ईमानदार होते हैं।' प्रिंस का
सीना गर्व से फूल जाता था।
“बिज़नेस के कारण हमारी जान-पहचान काफ़ी
लोगों से हो गई है, परन्तु हिंदुस्तानी लोग इस इलाक़े
में ना होने के कारण हमारी सोशल लाइफ न के
बराबर है। हम दोनों ही एक दूसरे के साथी बनकर
अपने आस-पास के वातावरण में जैसे कि समा
गए हैं।' मीटिंग में जाने की तैयारी करते हुए सिम्मी
बोली।
कई प्रकार की संस्थाओं के वे दोनों सक्रिय
सदस्य बन गए थे। माउन्टेन क्लाइंबिंग, रैस्कयू
सोसाईटी, हाईकिंग, स्नो रैस्कयू, कनूईँग, वुड़लैंड
वॉक, नेचर रिजर्व, साईक्लिंग और फोरस्ट प्रिज़र्वेशन
इत्यादि गतिविधियों में उनका काफी मन लगता
है। वे दोनों अपने व्यक्तित्व के अनुसार अपनी
विशेषताओं के आधार पर अपने आस-पास के
लोगों के साथ काम करने में व्यस्त रहने लगे।
पहले तो सिम्मी केक शॉप में काम करती थी;
जहाँ के बेकवैल यर्ट दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं,
घुड़सवारी वाले घोड़ों के अस्तबल में भी पार्ट-
टाइम काम करने शनिवार और रविवार को जाती
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