हिंदी चेतना ,अंक -60, अक्टूबर - दिसम्बर 2013 | HINDI CHETANA- MAGAZINE - ISSUE 60 - OCT-DEC 2013

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गौतम राजरिशी जन्मः १० मार्च १९७५, सहरसा, बिहार। संप्रति: भारतीय सेना। वर्तमान में कर्नल रैंक पर सुदूर कश्मीर में कहीं एक इन्फैन्ट्री बयलियन की कमांड संभाले हुये। साहित्य: हिन्दी-साहित्य के गंभीर पाठक। थोड़ा- बहुत लेखन भी । लेखन की शुरुआत कविता से । बाद में छंद का मोह जागा और तब से ग़ज़लगो | ग़ज़लों में नए लहजे और बिम्बों के लिए अपनी एक अलग पहचान। नियमित रूप ग़ज़लें हंस, वागर्थ, कादंबिनी, आजकल, कथादेश, लफ्ज़, आहा ज़िंदगी, शेष, वर्तमान साहित्य आदि मुल्क की तमाम पत्रिकाओं में प्रकाशित। विगत दो- ढाई साल से कहानी-लेखन में सक्रिय भागीदारी । दो कहानियाँ हंस में और एक-एक पाखी और परिकथा में प्रकाशित । इंटरनेट पर 'पाल ले इक रोग नादां (५५०. 29०7र/भा]'धुं79॥.0102900111) के नाम से लोकप्रिय ब्लॉग। स्थायी पता द्वारा- डॉ. रामे श्वर झा, वी. आई. पी. रोड, पूरब बाजार, सहरसा-८५२२०९ संपर्क ०१९५५-२१३१७९ , ०९७९७७९५९३३ ई-मेल एगांगा_7गु.751609797100.९0-.॥1 गौतम राजरिशी की पहचान ग़ज़लकार के रूप में है किन्तु वे बहुत अच्छे पाठक भी हैं। उन्होंने इस समय के लेखन को खूब पढ़ा है। ये विस्तृत आलेख एक पाठक के नज़्रिये से नई सदी के कथा समय को जानने का एक प्रयास है । 16 हू. जल अक्टूबर-दिसम्बर 2013 नई सदी के तेरह साल और हिन्दी किस्सागोई : एक पाठकीय नज़रिया गौतम राजरिशी इंग्लैंड के विख्यात गेंदबाज फ्रेड ट्रमेंन जब विश्व क्रिकेट इतिहास में तीन सौ विकेट का आकड़ा छूने वाले पहले क्रिकेटर बने, तो उनका दंध भरा वक्तव्य था 'मेरे बाद शायद कोर्ई और थी गेंदबाज आयेगा तीन सौ विकेट लेने वाला, लेकिन इतना तो तय है कि उस साले के घुटने थक कर टूट जायेंगे।' ट्रमेन के इसी दम्भोक्ति के पार्श्व में कहीं से एक इच्छा पनपती है कि काश वो एच.जी. वेल्स वाली यइम गशीन होती ओर में जा कर बैठ पाता चुपके से सदियों पहले हुर्ई उस हिन्दी कहानी की परिचर्चा में जब कहानीकारों की एक तीन सदस्य वाली टीम ने बड़े सलीके और बड़ी ही चतुराई के साथ अपने से पहले की पीढ़ी ओर अपने समकालीनों को धवा बताते हुये किसी काथित नई कहानी आंदोलन का आगाज किया था। उन्हें भी कहाँ पता था श्री फ्रेड ट्रमेन की तरह कि आने बल ता गत व आज जिनके समक्ष तीन सौ का आऑकड़ा ठिठोेली सा प्रतीत होगा...कि आनेवाली नई सदी में कहानीकारों की ऐसी टीम उभर कर आएगी जो हिन्दी कहानी को एक अलग ही बुलंदी पर ले जाएगी, जहाँ से वो कथित आंदोलन महज एक लतीफा बन कर रह जाएगा। नई सदी के इन तेरह सालों ने सचमृच ही चमत्कृत कर देने वाले कहानीकारों को हम जैसे हिन्दी के पाठकों से रूबरू करवाया है। बात कथ्य की हो कि शिल्प की हो कि भाषा सौंदर्य की हो...इस नई सदी की करिश्माई किस्पायोई का सम्मोहन हिन्दी साहित्य के पर्दे पर देर तक अपना जादू बिखेरते रहने वाला है। ..तो अगर इस नई सदी के इन तेरह सालों में उथर कर आए इन अजूबे हिन्दी कहानीकारों में से तेरह किस्सागोओं की एक टीम बनानी हो तो कौन- कोन से नाग शामिल होगे इस में 2 दुश्चारी सी कोड दुश्चारी थी ये, जब इस आलेख के लेखक को यह कार्य सोंपा गया इस हिदायत के साथ कि उसकी अपनी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद इस टीम के चुनाव में कोर्ई सियासत ना करे। एक ही गस्‍्ता शेष बचता था ऐसे में ओर वो था वोटिंग का। तकरीबन चालीस से ऊपर कथाकारों के नाग की फेहरिस्त बनाई गई जिनकी कहानियाँ इस सदी के दोयगन पाठकों के समक्ष आई ओर फिर इन तेरह सालों में वो अपने पाठकों को और-ओर सम्मोहित करते चले गये। साथ में इस बात को भी ध्यान में रखा गया कि कम-से-कम एक किताब इन किस्सायोओं की आ चुकी हो हम पाठकों के हाथ में। आलेख के लेखक ने अपने इक्यावन पाठक- मित्रों को, जिनकी रुचि हिन्दी-साहित्य में है और खास तौर पर जिन्होंने इन कथाकारों का लिखा हुआ पढ़ा है, को ये फेहरिश्त मेल, व्हाटस एप और एसएमएस द्वार भेजा और उन्हें फेहरिस्त में शामिल कथाकारों के नाग के आये अपनी पसंद के अनुसार अंक देने को कहा गया- सर्वाधिक पसंदीदा को एक अंक ओर उसी क्रम में बढ़ते हुये- शर्त ये भी थी कि एक अंक-विशेष देने के बाद दुबारा वो अंक किसी अन्य कथाकार को ना दिया जाये। इक्यावन में से कुल चौवालीस जवाब आए ओर वो थी जाने कितनी बार फारियाद करने के बाद। कुछ मित्रों से फोन पर लंबी बहसें भी हुई इसी सिलसिले में। हर कथाकार को मिले अंको को लेखक द्वार जोड़ा गया और फिर सबसे कम अंक पाए तेरह कथाकारों की फेहरिस्त बनाई गई । आइये देखते हैं इप सदी के इन तेरह सालों में सर्वाधिक पसंद किए जाने वाले तेरह किस्सागोओं की टीम को। फेहरिस्त वर्णमाला के क्रमानुसार है, न कि प्राप्त अंकानुयार /-




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