आज़ादी की नुक्ती | AZADI KI NUKTI PART 1 EKLAVYA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
25
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आजादी की नुकक््ती
_> राजनारायण दुबे
15 अगस्त के कारण हमने एक दिन पहले से कपड़े धो रखे
थे। 15 अगस्त के दिन हमने सबेरे 5 बजे उठकर मुँह-हाथ
धोए और नहाया। फिर हमने चाय पी और उसके बाद हम
ड्रेस पहनकर, जूते-मौज़े पहनकर बढ़िया तैयार होकर स्कूल
गए।
वहाँ हम थोड़े घूमे-फिरे और फूटे खाए। इतने में सर आ
गए और कहने लगे चलो लाइन में लूगो। हम लाइन में लूग
गए। एक मोड़ा हमरी लाइन में लगो। हमने बाके दो चार
करारे हाथ जमाए। इत्ते में बो मासाब के पास पहुँच गओ।
मासाब रो बा ने कही कि मासाब मोहे एक मोड़ा ने मार दओ.
तब मासाब मेरे पीछे दौड़े तई हमने भग दओ और सिंधी
कालोनी की गलियों में घूमत रहे और बुद्धा के खेत में से हीट
के गल्ले बाज़ार पहुँचे। भा पे भाषण भये। भाषण सुन-सुन के
हमरो दिमाग पच गओ। भाषण खतम भये हम सब स्कूल आए।
हम लाइन में लगे नुक्ती बँट रही थी।
फिर बोई मोडा मिल गओ। बो फिर हमसे उलझन लगो।
हमने बाके इत्तो मारो इत्तो मारो कि बाहे बेहोश कर दओ। हमें
एक पुड़िया नुक्ती मिली। उत्तीसी नुकती के पीछे हम दिन भर
परेशान रहे और नुक्ती खात-खात घर आ गए। ७
राजनारायण दुबे, पिपरिया, होशंगाबाद, म.प्र.। बालचिरिया (पिपरिया) तथा चकमक
फ़रवरी, 1990 में प्रकाशित। गोविन्द प्रसाद शर्मा, बालागुड़ा, मन्दसौर,, म.प्र.।
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