हिंदी चेतना -जनवरी 2011, अंक 40 | HINDI CHETANA- MAGAZINE - ISSUE 49 - JANUARY 2011

HINDI CHETANA- MAGAZINE - ISSUE 49 - JANUARY 2011 by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक फौरी यानि तात्कालिक मुसीबत का हल होते ही पूरी ज़िन्दगी आसान लगने लगती है। नैना ने भी दूसरा पांव सीधा कर लिया और निकी को गोदी से उतार दिया। ऐसे ही कई साल बीत गए। अब एक घर था जिसकी छत के तले वह सो जाया करती थी। यही तो ज़िद थी उसकी कि मुझे घर नहीं चाहिए। क्‍या एक बात पर दो लोग ज़िन्दगी को अलग रास्तों पर ले जा सकते हैं? क्‍या हज़ार सहमतियों को भुला कर एक असहमति को याद रखा जाना अच्छा है? उसके मन में ऐसा गुमान भी नहीं था कि ये एक बात साथ रहेगी बाकी सब छूट जायेगा। वह प्रेम करने का समय नहीं था। दिन के साढ़े तीन बज रहे थे। अभी दो घंटे और बाकी थे लेकिन उसने उसी समय उसे देखा था। वह गमलों को सरका रहा था। कैफे के शीशे लगे मुख्य दरवाज़े के बाहर दोनों तरफ तीन स्टेप्स में गमले रखे हुए थे। उनमें भांत-भांत के फूल खिले रहे थे। उसने दो गमलों के बाद तीसरा सरकाया और अपने लिए जगह बना ली। नेना ने उस समय नहीं सोचा कि जो आदमी दूसरों को सरका कर जगह बना रहा है कब तक उसका साथ देगा। वास्तव में ये प्रेम करने का समय नहीं था फिर उसने दिन के ठीक साढ़े तीन बजे ही उसे पहली बार देखा था। ब्लू कलर की डेनिम जींस और लाल रंग का बदरंग कुरता पहने हुए। उसने अपनी दायीं तरफ में गिटार का कवर रख कर उस पर मोड़ा हुआ घुटना रख लिया फिर उसने बायीं जांघ पर रखते हुए गिटार के एक तार को हलके से छू भर दिया। ज़िन्दगी में वक्त का कोई हिसाब नहीं है। कभी आप एक गुड्डे-गुड्डी के नाचते हुए खिलौने को दिन भर देखते हुए विंड चाइम का संगीत सुन सकते हैं और कभी एक पल भी भारी हो जाया करता है तो उन दिनों नैना के पास विंड चाइम को सुनने का समय था। वह रात नौ बजे कैफे से निकलती तब वह अपने गिटार को केस में डाल रहा होता। सड़क सबके लिए थी। अभिजात्य और निम्न वर्ग के लोगों में भेद करना कठिन था कि उस दौर में ता 14 ण वे अब चमेली के फूलों से दस कदम दूर खड़े थे। तेजिंदर सिंह ने एक ठंडी आह भरी। “ये बेल मेरे छोटे बेटे ने लगाई थी। जिसने इस घर में रहते हुए इसके दो हिस्से किये फिर वही एक दिन रूठ कर विदेश चला गया। इस बार दसवीं बार फूल आये हैं। पता है ये फूल उसने इसलिए लगाए कि उसकी माँ को पसंद थे। ् कट २ | _ हे 21०2 लोग जैसे थे, वैसा दिखना नहीं चाहते थे। वे दोनों सड़क पर साथ चलते थे। एक दिन बस स्टाप की बेंच पर देर तक बैठे रहे। हवा में कोई मादक गंध न थी। सूखे पत्तों से ज्यादा सिगरेट की पत्रनियों का शोर था। उन्होंने बस एक गंध से पहचान बना रखी थी जो निरंतर गाढ़ी होती चली जा रही थी। नेना ने झट से उफन रही दाल पर रखे ढककन को उठाया। अंगुली जल गई। ऐसे ही उसने भी एक बार जली हुई अंगुली पर चमेली के फूलों को बाँध दिया था। हँसता था, खिल उठेगी अंगुली फूल की तरह और अगली सुबह एक फफोला निकल आया। अब भी रसोई के बाहर रौशनी में फूल चमक रहे थे। वे ही नाकारा फूल। वह जब हाथ पकड़ता तब दौड़ने सा लगता था। उसे कोई जल्दी याद आ जाती थी नेना का साथ पाते ही वरना अक्सर बास्केट बाल के खम्भे से टेक लिए गिटार बजाते हुए दिन बिता देता था। उसके पास एक चमेली के फूलों की तस्वीर वाला थर्मस भी था, जिसमे ब्लैक कॉफ़ी भरी रहती थी। दिन कड़क हो या ठंडा उसने कॉफ़ी का रंग कभी नहीं बदला। एक दोपहर उसने ख़ास उसे बुलाया था। देखते ही उठा और हाथ पकड़ कर भागने लगा। वह उसे एक पाश कालोनी के पुराने बंगले में ले गया। दरवाज़ा खोलते हुए दीवार से सटी खड़ी चमेली की बेल दिखाने लगा। नेना ने याद किया कि वह वाकई पागल जनवरी-मार्च 2011 था अव्वल दर्जे का पागल कि एक फूल के लिए इस तरह उसे भगा लाया था। वह खड़ा देखता रहा और नैना सोचती रही कि अभी घर से कोई आएगा और उन दोनों को दुत्कार कर बाहर कर देगा। इस घर में रहते हुए दस साल हो गए। इन दस सालों में तेजिंदर सिंह ने कभी उस छोटी खिड़की से कोई चीज नहीं ली। नेना कहती, आज मैंने कुछ आपके लिए बनाया है तो तेजी साहब कहते बड़े दरवाज़े से आओ, ये चोर खिड़कियाँ तो मुझे रिश्तों की जेल सी लगती है। नेना लगभग रोज उनका खाना बनाती और रोज़ ही ये संवाद होता था। इससे ज्यादा वे कुछ नहीं बोलते। खाने की परख नहीं करते थे जैसा था वैसा था। निकी के साथ नहीं खेलते थे। उससे उतना ही नाता था जितना कि गुटर गूं करते कबूतरों से। नेना को कुछ अधिकार स्वतः प्राप्त लगते थे यानि वह पिछले दस सालों में इस बेल को कटवा सकती थी। ये चमेली की गंध उससे दूर हो भी सकती थी मगर ऐसा हुआ नहीं। एक दो बार उसने चमेली को पास खड़े हो कर देखा था फिर यकायक लगा कि कोई देख रहा है। सरदार तेजिंदर सिंह उसे और चमेली को गूृढ़ अर्थों में एक साथ देख रहे थे। वह सहम गई और फिर कभी उस बेल के साथ सट कर खड़ी नहीं हुई। शहर में हादसा हो गया। उसने किसी अधिकार से उसे रोक लिया। आज की रात मत




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