राज - भाषा हिन्दी | Raj Bhasha Hindi
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.71 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र राज-भाषा हिन्दी आप मजूर करेंगे। इस तरमीम के बाद यहाँ जो कार्यवाही होगी वह मैं आशा करता हूँ कि हिन्दुस्तानी भाषा मे होगी न कि अग्रेजी में । हमारे नरम दल के भाई अग्रेजी को ही अपनी राष्ट्रभाषा मानते थे और यदि मानते नही थे तो कम-से-कम बनाना चाहते थे लेकिन हमने देखा कि इतने वर्षों के बाद भी हिन्दुस्तान मे कितने लोग अंग्रेजी पढ सके। अग्रेजी आज कितने लोग समझ सकते है। हमें इतिहास से माठूम होता है कि विजेता जिन पर विजय प्राप्त कर लेता है उन पर वह अपनी भाषा लादना चाहता है। आयरलेण्ड के इति- हास मे इगलंड के इतिहास मे हंगरी के इतिहास मे अनेक जगह हमें यह देखने को मिलता है। जिन देशों पर विदेदियो ने अपनी भाषा लादनी चाही उन्होने बराबर अपनी भाषा के लिये युद्ध किये और आखिर में विजय प्राप्त की । जहाँ तक आयर- लैंड की गैलिक भाषा का सम्बन्ध है वह करीब-करीब समाप्त हो चुकी थी लेकिन उन्होने उसके लिए भी लडाई की और आखिर में आयरलैण्ड की जीत रही। हिन्दुस्तानी को व्यवहार मे लाने के लिए तीन कठिनाइयाँ पेश की जाती है । पहली बात यह कही जाती है कि हम को ऐसे वैज्ञानिक दब्द नहीं मिलते जिनसे हमारी कुक्त कार्रवाई हिन्दुस्तानी मे हो सके। मैं कहना चाहता हूँ कि हमारे सामने उस्मानिया युनिवर्सिटी का एक बहुत बडा दृष्टान्त मौजूद है जहाँ पर सारी पढाई का माध्यम हिन्दुस्तानी है । हिन्दुस्तानी मे वैज्ञानिक दाब्दो को ढालने की उन्होंने कोदिश की उसके लिए विशेषज्ञ रखे । मैं यह नहीं चाहता कि जो लोग हिन्दुस्तानी नहीं बोल सकते उनको जबरदस्ती हिन्दुस्तानी मे बोलने को कहा जाय। इसीलिए मदर टंग के बाद मैंने अग्रेजी शब्द जोड दिया है। जो लोग हिन्दुस्तानी नहीं बोल सकते उनको आजादी होगी कि वे अग्रेजी में बोलें। तीसरी कठिनाई यह कही जाती है कि बहुत-से लोग हिन्दुस्तानी नहीं समझ सकते । मैं कहना चाहता हूँ कि ऐसे लोग बहुत कम है जो हिन्दुस्तानी न समझते हो। उनकी सख्या अँगुली पर गिनी जा सकती हैं। जो कठिनाई आज हमारे सामने लाई जाती है वह काग्रेस के सामने भी लायी जाती थी पर हमने देखा कि महात्मा गाधी के प्रयत्तों के बाद आज काग्रेस मे हिन्दुस्तानी मे ही भाषण होते है। वहाँ पर जो लोग हिन्दुस्तानी नही जानते वही अग्रेजी मे भाषण देते हैं। यहाँ भी यही होना चाहिए। ९ तारीख से अब तक जो कार्यवाही विधान-परिषद् ने की है उसे देखते हुए यह मालूम होता है कि यहाँ पर अंग्रेजी का ही दौरदौरा रहेगा। आज से २० वर्ष पहले जब मैं कौसिल आफ स्टेट का मेम्बर था मैने इस सम्बन्ध में वहाँ भी एक प्रस्ताव रखा था। उस वक्त सर गोपाल स्वामी जहाँ तक मुझे याद है वहाँ मौजूद थे और उनको याद होगा कि उस समय कितनी बह हुई थी।
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