भागो नहीं दुनिया को बदलो | Bhago Nahin Duniya ko Badalo
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.04 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टः भागों नहीं बदलों भीतर सीड़ बाहर नाबदान श्र कूडे-करकटकी बदबू यह कया श्दमियोंके रहने लायक घर है ? इन्हीं सड़ी भॉपड़ियोंमें बच्चे पैदा होते हैं । जब वह आँख खोलते हैं तो उनके श्रास-पास कया दिस्वलाई पड़ता है ? गरीबीका नंगा नाच तिलमिलाती अँतड़ियाँ सूखा मह नंगा बदन दुखराम--श्राजकल लड़ाई के जमानेमें दस दस रुपयेकी साड़ी कौन खरीदेगा ? फटा-चीथड़ा भी तो नसीब नहीं होता । जान पड़ता है टाट भी पहिननेको नहीं मिलेगा । मैया --हां श्रौर बच्चा नज्जा-भूखा-सरीर और वहीं गरीबी चारों श्रोर देखता है । सूखे थनोंसे दूध निकालना चाहता दे । इसपर भी जो हमारे देसके राधे बच्चे बचपन हीमें न मर जायें तो बड़े झचरजकी बात है । द्खराम -- हाँ मैया सतमीके बच्चोंको नहीं देखा ? दो तीन बरसोंके मीतर उसका लड़कोंसे भरा घर खाली हो गया । सन्तोखी--मैं समभता हूँ बच्चोंके लिए अरच्छाही हुआ पेट भर खाना किसे कहते हैं क्या इसे उन्होंने कभी जाना ? जाडेमें बेचारे जो किसीके कोल्हुआड़ेमें श्राग तापने जाते ऊख चुराकर ले जायगा कह कर दुतकार दिये जाते । मानों वह श्रादमी नहीं कुत्ते थे । कोदोका पुवाल या ऊखकी पत्तियोंमिं घुस कर रात बिता देते । भूख लगती तो किसीके द्वार पर खड़े होते । दया श्राई तो किसीने एक कौर दे दिया नहीं तो फिर फटकार | जड़ेया ( मलेरिया ) में सब गिर जाते तिल्ली बढ़ती पेट फूल कर कुंडा जैसा हो जाता मुँह पीला श्र रखें फूल जातीं । फिर एक-एक करके पके पत्तेकी तरह भड़ने लगते क्या यह श्रादमीका जीवन हे ? मैया--अअब समभा न यहीं नरकका जीवन है तम समभते होगे कि सहरके साफ कुर्ता-घोती पहिननेवाले बाबू लोग श्रच्छी जिन्दगी बितातें होंगे दुखराम - हाँ मैया हम तो ऐसाही समभते हैं--वह तो पान भी खाते हैं सिनेमा भी देखते हैं हम लोगोंको देख कर गन्दा-गवार कह कर हट जाते हैं ।
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