मानवता के दूत भाग - 1 | Manavata Ke Doot Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्तरह हुई, वह इतिह्याप्त में एक अत्यन्त दर्दनाक पव-है.3.मो हि
पुत्र की मृत्यु के ठोक पद्धह दिन बाद बंपर रो रात भे-कुछ,धर्म
द्ोही लोगों ने महामौद्गल्यायन की “सुनों“कुटी की ;घेरईर
लाठियों के प्रहार से उनके मस्तक को च्र-चूरे करके शत
एक झाड़ी में फेंक दिया था । भगवान बुद्ध के मत्र में महामौद-
गल्यायन के प्रति कितना सम्मान था यह तो इसी से पता चलता
है कि उन्होंने महामीद्गल्थायन के सम्मान में उनकी धातुओं
(अस्थियों)पर राजगृह में एक चेत्य वतवाया था ।
महामीदुगल्यायन परम निर्वाण प्राप्त, रागरहित और विमल
चित्त वाले भिक्ष थे। एक बार मोद्यल्यायन वैशाली में भिक्षाटन
करते घूम रहे थे । एक गली में बिमला नामक रूपसी युवती
रहती थी | मौद्गल्यायन की परम शान्त-सोम्य आकृति पर
वह सुग्ध हो यई । उसे अपनी जवानी और रूप पर बड़ा अभि-
मान था। किसी को भी फंसा लेना उसका बाँए हाथ का खेल
था। महामौद्गल्यायन जब 'चारिका' से अपनी कुटिया में लौटे
तो वहाँ पुरी तरह सजी-धजी विमला उपस्थित थी । उसमे अपनी
मीठी-मीठी बातों तथा अनेक मनमोहक हाव-भावषों के द्वारा
मोदगल्यायन को जाल में फंसाना चाहां। महामौदगल्यायन ने
घिमला को इस कुत्सित व्यवहार के लिए इतना धिक्कारा कि
उसका रूप और यौवन का सारा घमण्ड चूर-चूर हो गया। वह्
ग्लानि और लज्जा के मारे पानी-पानी हो गई । उसमे वहीं पर
सन््यास लेने का निश्चय किया, पर उस समय उस पर विश्वास
कौन करता | संघ से अलग रहकर वह अकेले ही धर्म-साधता में
लग गईं। बाद में उसे संघ में शामिल कर लिया गया।
सारिपुत्र ओर महामोद्यल्यायन” अपने इन दो शिष्य-रत्नों
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