योग एक वरदान | Yog Ek Vardan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोक्ष क्यो ? ल्
जिनकी संख्या हिन्दुप्रों में तैतीस करोड तक मानी गई था रृपह तल
बात है जब हि दुस््तान की झ्ावादी तैतीस करोड मानी जति थी, राम
सत्तर करोड़ है तो शायद देवताप्रो की सख्या नर दे रोड पा
जाएगी) झादि बढाए। इन सवबी सप्टि बर भादमी ने 'छुः 02 या सपि८७
ली। उसे कही से कुछ भाशा की विरणें दिखलाई दी। अर
भाषा में नए-नए शब्द बनते गए, भाषा सशवत होती गई, वंस-वैसन्चह::
अधिक से ग्रधिक विचार करता गया--प्रधिक्र विचार भर्थातु अधिक
प्रतुमान, प्रधिक क्टपना ।
अगर भाषा नही होती दो दु ख होता, सुख होता, भय झौर शवा भी
होती, लेकिन न तो ईश्वर होता, न देवी-देवता होते, न धरम होते, न दश न-
शास्त्र होत। श्ञान विनान कुछ नही होता । भगर सच पुछा जाए तो भाषा
नही होती दो हमें मोक्ष की भी प्रावश्यक्ता नहीं होती । हम णाम लेते,
आदमी के लिए प्रकृति प्रदत्त सारे झाचरण करते णाते, सुख-दु ख का प्रनु
भव करते और झत में मर जाते | हर व्यक्त की कहानी उसझे जम से
झारम कर उसकी मृत्यु पर समाप्त हो जाया करती ।
लेकिन सयोग से भौर हमारे दुर्भाग्य या सौभाग्य से हमारे पास भाषा
है, भाषा मे लाखो शब्द हैं वेरे-बैसे शब्द हें जि'हे हमने जो घाहा है भ्रथ
पदि( हैं भौर हमें पैदा होने के बाद से ही भाषा से सामना होता है हमें भाषा
सिखलाई जाती है इसलिए हमारा सारा जीवन लगभग पूरी तरह भाषा बे'
द्वारा भौर उसी से प्रभावित हीकर चलता है।
झाप कल्पना कीजिए कि धद्ापके पास भाषा नही है, भ्रव श्राप सोचिए,
अगर, ऐसा हो तो कया श्राप कसी को समभा सकते हैं दि देशभवित क्या
होती है ? राष्ट्र भक्ति क्या होती है? क्या श्राप उसे देश झौर राष्ट्र के
लिए युद्ध मे जाकर भपने प्राण देने के लिए तैयार कर सकते हैं ? परस्पर
मैत्री, पितृ-मात, अआातू भक्ति, याय ग्रमाय उपवार-शपकार, थच्छा-बुरा
अतव्य ग्रक्तव्य, पाप पुण्य कुछ भी तो भाषा के अभाव से किसी को नहीं
बताया जा सकता और जम के साथ प्रवृत्ति के रूप मे थें शौर इस तरह
वी संक््डो चीजें मनुष्य के अदर पद्दो आती | यहा तक कि किसी एकया
झीक सावार या निराकार ईश्वर या देवता आदि का विचार भी श्रादमी
को सहजात रूप मे नही मिलता। उसे तो बचपन से ही वह-कहनर सम-
भाया जाता है कि देखो, ईश्वर है या अमुकक्-श्रमुक देववा भादि हैं, धौर
थे खुश होते हैं तो तुम्हाणा भला करते हैं, नाखुश हांते हैं तो तुम्हें दु ख दे
सकते हैं भौर उन पर विश्वास करो, उन की भवित करो, उनकी प्रार्थता
करों, पूजा चढाप्रो तो वे खुश होकर तुम्हारा कल्याण करेंगे, सारे घम
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