हिन्दी के कवि और काव्य भाग - 3 | Hindi Ke Kavi Aur Kavya Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २३ )
तथ में भय जो वादर सेसा | करो सदा अँतकाजल अदेसा॥
जब तें ज़तीफ कर सरम बिसेस्यों | तप संपत अमिरथा देस्यों॥
रोस रोस यह विरह चखानी | कोड न रहा जग रहे कहानी ॥
देहु दया सोहे कब मोख्। हरहु मोर अमन अवगुन दीखू ॥
पढ़े प्रेम के अच्चर कोई। दई असीस मोर गति होई॥
इम न रहव आखर रहि जाईं। सब हि लोग होइहि सुख दाई ॥
भर >< भर
सात दिवस में कथा सेहाई। कीन्ह समापत दीन्द बनाई ॥
इत्यादि |
कबि निसार सैयद इंशाअज्ला खा के सम सामग्रिक थे इसका पता भी
अआश्यंतरिक प्रमाणों से मिक्ष जाता है, साथ द्वी यह भी पता चलता है कि हंस-
जचाहिए नामक मसनवी काव्य भी इनके समय में प्रचलित था।
हंस जवाहिर प्रेस कहानी | कहा मसनदी अंविरत वानी ॥)
हंसा कह्दे जहों लए भेद |ओऔ सब कथा जहां लह वेदू॥
मूँठ ज्ञान सम तिन सन भापा | अब यह सॉँच कथा चित क्ञागा ॥
भर >८ ्
कथा का सारांश
यूसुफ जुलेखा की कथा का आधार है प्रसिद्ध फारसी काव्य 'यूसुफ-जुलेखा'।
कवि निसार ने इसको भारतीय जासा पहिनाने की चेष्टा की है पर इस चेष्टा में यह
अधिफ सफल नही हो सके हैं। मूल कथा यो है।
नवी याकूब फिनआ नगर मे रहते थे जो कि नूह! साहच का दसाया हुआ
था। नबी लूत' की लड़की से इसहाक् ने शादी की थी जिससे 'इंस' और याकूब!
नाम के दो बेटे पैदा हुए थे । याकूब की सात बीवियां थीं और उनसे बारह बेटे हुए
इनकी रोहेल” नाम को बीबी से 'यूसुफ' नामक पुत्र और 'दुनियाँ! नाम की कन्या
हुई । याकूब यूसुफ को वहुत ज़्यादा मानते थे ओर इससे अन्य सब लड़के इनसे
भयानक ईर्ष्या करते थे । बात यहाँ तक पहुँची कि शेष सब भाइयों से सिल्ञ कर
यूसुफ का आखणांत करने का निश्चय किया इस विचार से जब वे जद्भल मे सेड़
चराने जाने लगे ते पिता से कह सुन कर युसुफ को भी ले गये। बहां इन लोगों
मे उसे कुएँ में ढकेल दिया ।* उसका एक कुरता छीन कर बकरी के ,खून से रँग
दिया और घर में पिता के सामने कुर्ता पेश करते हुए कहा कि थूसुफ को
भेड़िये ने मार डाला |
*इस स्थल्त की यूसुफ़ की कहो हुई वाते और उसका व्यवहार ईसा या सुहस्मद की
उच्चता की याद दिलाती हैं ; साथ ही यददोँ की कविता भी उच्च कोटि की बन पड़ी है |
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