सूर्य सिध्दांत भाग 2 | Surya Siddhaant Part 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35.38 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
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No Information available about महावीर प्रसाद श्रीवास्ताव - Mahaveer Prasad Shrivastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चन्द्रग्रहणाधिकार ४्ठ मध्यम व्यास ( स्फुद गति मध्यस गति चन्द्रकक्षा में सुय॑ का स्फुट ब्याह सुर्य का स्फुट व्यास ( सूर्य का सहायुगोय भगण छाए पं सफलशिगुक ता रशससम्टसलमथममसमसतमनमनम चन्द्रमा का सहायुगोय भगण _ सूर्य का स्फुट व्यास ( चन्द्रकक्षा सूर्य की कक्षा स्फुट व्यास अथवा यहां यहू शंका उत्पन्न हो सकती है कि क्या सुय का योजनात्मक आकार भी घटता बढ़ता है क्योंकि ऊपर बतलाया गया है कि सुय॑ का स्फुट (स्पष्ट) व्यास उसकी स्फुट गति पर अवलंबित है जो सदा घटती बढ़ती रहती है । परन्तु बात यह नहीं है। सुये का योजनात्मक आकार स्फुद गति के अनुसार कदापि घटता बढ़ता नहीं है हाँ कलात्मक या कोगात्मक आकार अवप्य बढलता है जिसकी सीमांसा स्पष्टाधिकार पृष्ठ ८४-म६ में अच्छो तरह की गयी है । यहाँ भध्यम व्यास और स्फुट व्यास का परिमाण यद्यपि योजनों सें बतलाया गया है तथापि इसे कोणात्मक ही समझना चाहिए क्योंकि इस जानने की जो रीति भास्कराचार्य जी ने लिखी है उससे यह अथं निकलता है । भास्कराचार्य जी कहते हैं कि जिस दिव सुर की स्पष्ट या स्फुट गति मध्यम गति के समान हो उस दिन उदयकाल में ३४४८ इकाइयों के समान दो लकड़ियां लेकर इनके दो सिरों को मिलाकर मूल स्थानों में आँख रखकर सूये के बिब को इस प्रकार बेधो कि इन लकड़ियों के आगेवाले सिरे बिस्वब के उत्तर और दक्खित वाले किनारों को स्पश करें । इसो दशा में लकड़ियों के सिरों को इस प्रकार कस दो कि आगेवाले सिरों की दूरी में कोई भेद न पढ़े । अब इन सिरों की दूरी को उसौ इकाई से नापों जिसे लकड़ियों की लम्बाई नापी गयी है । यह अन्तर जितनी इकाइयों के समान होगा उतनी ही कला सूयं के बिम्ब का व्यास होगा । भास्कराचाये जी के अनुसार यह व्यास ३२ ३११३३ होता है । यदि इसको ३२३० या ३२४ माना जाय और सुयें की कक्षा का मान ४३ ३ १ ५०० योजन लिया जाब तो सुये- बिम्ब का योजनात्सक सान इस प्रकार प्राप्त होगा --- एप १. गणिताध्याय पृष्ठ १७१-१७२ २. आजकल यह काम परकार (तांप्राढा5) की नोकों से किया जा सकता है। आँख उस विन्दु पर होनी चाहिए जहां कम्पास की दोनों भुजाएं मिलती हों । ३. भूगोलाध्याय इलोक ८६ |
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