ज्योतिषतत्त्व सुधार्णव | Jyotishattattv Sudharnav
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सटिप्पणीक-क्षाषार्थसहितः । (३)
हि अथ मेंषादीनां विशेषसंतज्ञा:
यतावुरिजितुमकुलीरलेयपां ५ थिययककीपों ः
क्रियतावुरिजितुमकुठीरलेयपाथिययककेीपोख्याः ।
तोक्षिकआकोकिरोहद्रेगश्रान्त्यमश्वेत्थम ॥ ५ ॥ ( डः )
अथ-भव राशिगणकी .विशेषसंज्ञा कही जातीहै, यथा-मेषका दूसरा नाम किय,
वृषका दूसरा नाम तावारे, मिथुनका नितुम, कर्केका कुीर, सिंहका लेय, कन्याका
“पाथेय, तुछाका यूक, वृश्चिकका कोर्प, धनका तौक्षिक, मकरका आकोकेर, कुम्भका
हृद्दोंग और मीनका दूसरा नाम अन्त्यम है ॥ ५ ॥
अथ करसोम्यादिविवेकः
कूरोईथ सोम्यः पुरुषोड़ना च ओनो5थ युग्म विषमः समख् ।
चरस्थिरद्यात्मकनामधेया मेषादयो5मी कमशःप्रदिष्ा॥ ६॥(च)
अ्थ-मेष, मिथुन, सिंह, तुठा, धनु और कुम्म इन छः राशियोंकों कर पुरुष
भोज झौर विषम राशि कहतेहें । वृष, कके, कन्या, वृश्चिक, मकर ओर मीन इन
छः राशियोंकों सोम्य, अड्भना युग्म और सम जानो, मेष, कके, तुछा ओर मकर इन
चारोंकों चर राशि कहतेंहें. वृष, सिंह, वृश्चिक और कुम्म इन चारोंको स्थिर राशि
कहतेहें ओर मिथुन, कन्या; धव और मीनको दचात्मक द्विस्वभाव राशि कहतेहें ॥६॥
४ अथ पुण्पयादिविवेकः हि
पुण्यश्र पुष्करथेव आधानाख्यस्तथेव च ॥
अुत्या वृत्त्या भवन्त्येते नित्य द्ादशराशयः ॥ ७ ॥
अर्थ-अब मेषादि राशिकी पुण्यादिसंज्ञा कहीनातीहै, यथा-मेष, करके, तुला, और
मकर इनकी पुण्य संज्ञा है। वृष, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ इन कई एक राशियोंकी
पुष्करसंज्ञा है । मिथुन, कन्या, धन और मीन इन राशियोंकी आधानसंज्ञा है ॥ ७ ॥
( डः ) ब्यवदह्ारारथ ययाक्रम॑ विशेषद्वादशर्सज्ा आह | क्रियोति | आकोकेर इति मकरस्व संज्ञा
इद्गोगः कुम्मस्य संज्ञा इत्यथेः | इति ॥
( च) राशीनों ऋरादिसंज्ञा आह | क्ूरइति । मेषादयो राश्षयः यथाक्रम करसीम्पादिसंज्ञका
अथमःऋरः:द्वितीयः सौम्यः ततस्तृतीयःक््रश्वतर्यः त्षोम्य इत्यादि । तथा प्रथम: पुरुष: द्वितीया
ख्रीत्यादि। तथा प्रथम ओजः द्वितीयो युग्मः इत्यादि ओजशाब्दो5्पमदन्त:।तथाच बृहज्नातके “ओजह्षे
रुपांशकेष वलिभिः” इत्यादि तत्रेव “बुग्मे चन्द्रमसि तथोजभवने? इति। तथा | प्रथमो नियम
द्वितीयः सम हत्यादि। तथा प्रथमश्नरः द्वितीयः स्थिरः ठतीयो द्वबात्मक इति एवं ककैटश्वर: सिंह:
स्थिरः कन्या द्वचत्मक इत्यादि द्वयात्मकश्वरस्वभावः स्थिरस्वभावश्व ठन्न चरसमीपाद्ध चरःस्थिरस-
पाद्ध स्थिरमिति। तथाच दैवज्ञवक्लभाख्यायाम् “द्विदनी रमोत्गते चरस्थिरोज फर्क ददत:।” इति॥
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rakesh jain
at 2020-11-24 16:45:08