मुट्ठी भर कांकर भाग - 1 | Mutthi Bhar Kankar Bhag - 1

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Mutthi Bhar Kankar Bhag - 1 by जगदीश चन्द्र - Jagdish Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहने लगी बावाजी के जोहड़ में कूदकर जान दे दूंगी, या घतू रा खा लूंगी।” अगुरी ने भगवती को अचरज और शंका-भरी नद्वर से देखा तो बह उसकी ओर को भौर भी झुकती हुई बोली, “तेरी सोगन्ध, सच कहूँ। रत्ती-भर भी झूठ कहूँ तो मेरी देह में कोडे चलें।...मैं उसे मन्दिर के पुजारी के पास ले गयी। पता नही उसने क्या मन्त्र फूंका, कैसा टोना दिया--छुलतानसिह इब उसे आँप के काजल की तरह रक्‍्खे है। सीतो जब भी कही मिले है तो पाँव पकड़ लेवे है । मुझे तो वस इस बात की खुशी कि उसका धर बस यया। नूँ कहूँ इब तो वह पालहना भी झुलायेगी ।” भगवती ने ऐसे कहा जैसे कोई बड़े रहस्य की बात कह रही हो । “अच्छा !” अगूरी की आँखें फैल गयी । फिर भगवती की ओर झुकती हुई बोली, “गली-मुहल्ला तो कुछ और ही कहे है। सोमा दाई भी कह रही थी कि उसके पेट में वायगोला है । यह भो सुनूं कि सीतो मे अपने धरवाले को बुछ दिला दिया है । आजकल तो वह उसे सूछो चाय ओर पुजारी को मलाईवाला दुघ पिलाव है ।” “आओ गया तैरे मन में भी पाप !” भगवती भड़क उठी, “शायद तेरे आदमी को तैरे इसी पाप का दण्ड मित्ला है। मन का मैल आँप को नही दीखे, इसी तरह सामने आवे से । मेरा भगवान सव कुछ देख रहा है। वह हर पापी को उसके किये का दण्ड देवे है। सीतो वेधारी ठाझुरणी के भोग के लिए मन्दिर में दूध देवे है। लोग सौ-सी बातें बनावें हैं। वह तो सास-माँ समझकर मेरा भी आदर- सत्कार बारे से । सो लोग तो इसपर भी कहेंगे कि सुलताने की कमाई इस रण्डी बामणी के धर जा रही है ! यह धोती भी तो उसीने मुझे दी है। फल आने पर उसका आदमी मेरे घर मे मन-मर नाज अपने हाथो से छोडने आवे से ।” भगवती ने ऐँंठ के साथ कहा1 फिर थोडी देर चुप रहकर आपें नचाती हुई बोली, #विछले जनम में जिमको दिया उससे इस जनम में लेना लिया से 1 विधाता के लिसे को कोई नही मेट सके | जिस तरह मैं बाल-विधवा हो गयी पी, गांव के चौधरी मेरी मदद न करते ठो मैं भूखो मर जाती ! घर में ठाकुर न होते तो पहाइ जैँपी जवानी कंसे विताती ! जिसका किसी के साथ जो सम्बन्ध है वह हर हीले में पूरा होकर रहेगा अगूरी ।/ “ताई, तू तो बुर मान गयी। मैं तो सुदी-सुनायी वात कहूँ हूं। मेरे मन मे तो ताई, ठाकुरजी की सौगन्ध, न कोई पाप है ओर न मैल...। ताई, मन्दिर कब जाऊं?” अगूरी मे यो कहा जेंसे अपने कहे का प्रायश्वित्त कर रही हो। “अभी चली जा । पहलाद के साथ जाता। धडो-दो-घडी नवाज में चाँदी का एक रुपया डाल दै। तेरी गाय दूध तो देती होगो ? एक कटोरा दूध ले लेना और शक भेली गुड की ।” भगवती ने समझते हुए कहा, “हाँ हनुमानजी के लगोट के मुट्ठी भर काँडर / 17




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