राम की लड़ाई | Ram Ki Ladai

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Ram Ki Ladai by लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भेताई मसखरा नेताई मसखरा नेताई रमई नेताई सरजू नेताई नेताई मसखरा मेताई सरजू बेत्ताई मसखरा « दौवाला बोल्या । सन पचहत्तर मे सबकी दुकान बन्द कर फिर अपनी दुकान खोल्या । आयी नसबन्दी, दुकान बन्द कर दी। न लगे नमक, न लगे हल्दी । भला हो राजनीति का । फार्मूला मिल गया, कैसे चना बेचकर होता है कोई लखपती । चना गरम । चेचना-बिवना ही अपना धरम । अरे, चुप रहता है या नही । ये हैं चना गरम वे व्यापारी, मैं हैं इनका पटवारी 1 देखो, यह बदमाश रामलीला नही होने दे रहा। क्योकि रावण राम बन रहा। पर अब नहीं चलेगी यह चाल । जनता खीच लेगी खाल। जनता माने ? जानकी । जानकी माने ? जनक की बेटी, भारत माँ, जिसके शरीर मे ऋषि-मुनियों वा रक्त है । जिसने पृथ्वी के भीतर से जन्म लेकर हमे यह जताया कि हमारी जान पहचान तभी पूरी होती है, जब हम अपने से बाहर आते है। पर जो अकेला है, वह बाहर नही जा सकता, सारी श्ितयों के बावजूद रावण अकेला था। अकैला था तभी डरा हुआ था। डरा हुआ था तभी शक्ति को चुराता, डाके डालता रहता था। तो मैं बही रावण हुँ---मैं रावण, लीला नही करूँगा। यही तो, रावण मत बनो । रावण की लीला करो | वपड़े उतारे नही कि रावण गायब । क्रष्ट नेतागिरी को कपडे वी सरह उत्तारकर देखो, कितने सहज सुन्दर हो, जेसे सब है। बहाँ भटकते हो, चलो, रावण बनवर देखो--क्या है रावण । जब अपने- आपको देखोगे तो उसी देखने मे सब-कुछ साफ दीखने जगेगा। चलो, देखता हूँ। रप्मगुलाम को या अपने-आपबो ? अगर मैं रावण बन सकता हूँ तो राम भी बन सकता हूँ। हनुमान और भरत भी 1 यह हुई न बात । मेरा सवाद क्या है २ रावण घनुपयज्ञ मडप म आवर पृथ्वी माँ को प्रणाम बरता है। प्रणाम करो, रावण 1 राम की लडाई . 25




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