हिन्दी विद्यापीठ ग्रन्थ-वीथिका | Hindi Vidyapith Granth-Vithika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Vidyapith Granth-Vithika by

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

अगरचन्द नाहटा - Agarchand Nahta

No Information available about अगरचन्द नाहटा - Agarchand Nahta

Add Infomation AboutAgarchand Nahta

डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

No Information available about डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

Add Infomation About. Dr. Satyendra

नूर मुहम्मद - Noor Muhammad

No Information available about नूर मुहम्मद - Noor Muhammad

Add Infomation AboutNoor Muhammad

मुनि कन्तिसागर - Muni Kantisagar

No Information available about मुनि कन्तिसागर - Muni Kantisagar

Add Infomation AboutMuni Kantisagar

रूपरसिक - Ruprasik

No Information available about रूपरसिक - Ruprasik

Add Infomation AboutRuprasik

लल्लूजी लाल - Lalluji Lal

No Information available about लल्लूजी लाल - Lalluji Lal

Add Infomation AboutLalluji Lal

श्रीवासुदेवशरण अग्रवाल - Shreevasudevsharan Agrawal

No Information available about श्रीवासुदेवशरण अग्रवाल - Shreevasudevsharan Agrawal

Add Infomation AboutShreevasudevsharan Agrawal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
खण्ड १ ] जाहरपीर १९ बोलो बांगर के बीर की मदद । बाछुलि को पूत बांजन कूं भूत, परचे की खातरि घाया ई ऐ श्रजी हिन्दू मुसलमान दोनों दीन धार्मे, बादशाह नहीं आया ई ऐ । गूसा भया बागर कोई राना, जब घोड़ा सजवाया ई ऐ घोड़ा मारि गयौ डिल्ली कूं बास्थाइ जाइ जगाया ई ऐ अजी लाल पलंक पे सोवे बास्याइ पलके ते श्रौंधा मारा ईऐ अजी दौरी आई बास्याई तेरी अम्मा कौनें मरद सताया ई ऐ पांच मौर और एक नारियल पीरजी कौ पंजौ उठाया ई ऐ जब मेरो मालिक महरि करे, सब्‌ कूनबा जारति आया ई ऐ महलव में राजा देवराय निरपु दुरूयाइ भली सी रानी किसिमिति में ई फलू नांइ जोगी जती सेऐ मैने इन पै मेने डारुयो सुवाल रानी और संकलपी गाय, रानी किसिमित में तो फल नाँइ अरे भली सी रानी ० रानी माल परगनों बहुत ऐ बैठी भूंजी राजू राजा माइ बिना कैसौ माइकौ, पिय बिन कैसौ सिंगार घन बिन्‌ नांइ धनेसुरी राजा ऋतु बिन नाइ मल्हार महलन में रानी ज्यों रही ए समझाय । श्ररे संग सहेली बोलि के करि श्रार्मो गाइ बजाइ पिया पनारे पौरि जूं धनि ठाड़ी पकरि किबार ऐ श्ररे बांह छड़ाएऐं जांतु ऐे निबल जानि के मोय एऐ परि हिरदे में ते जाइगौ राजा मरद बदूंगी तोय ऐ जो तेरी मनसा जोग पै काए कं कीयौ ब्याहु ऐ परि नौ से घोड़ी ले चढ़ यो बाबुल जी की पौरि एऐ बनजारे की आगि ज्यों गयी सिलगती छोड़ि अरे मेरे राजा जौ तेरी मनसा जोग पै तपी हमारे द्वार ऐ मढ़ी छवाइ दर काच की मढ़वाइ दर हीरा लाल एं परि गंगा मंगाऊं हरह्वार की नित उठि करो अ्रसनान ऐ भूखे तो भोजन करूं हारे दाबू पांइ ऐ ज्यों जोगू बने रानी ज्यों बनिबे कौ नांइ ऐ. परि ऐसे जोग नां बनें रहे भोग का भोग ऐ श्रे राजा साधू जन थमते भले जौ मति के पूरे होंइ अरे राजा बंदा पानी निर्मला जो जल गहरा होइ साधू जन थमते भले मति के पूरे होंइ श्री रानी बंदा पानी गांदला बहता निरमल होइ साधू जन रमते भले जाते दाग न लागे कोइ श्ररे राजा गलखासा जामा बोरि की किया भगम्मर भेस ऐ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now