कगार की आग | Kagar Ki Aag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गोमती जझटपट घर की ओर भागी ।
“तुमको अभी पटवारी ज्यू बुला रहे हैं....।” आगस्तुकों में से एक
ने कहा ।
“क्यों बुला रहे हैं ?”
“चोरी के मामले में कुछ पूछ-ताछ का चक्कर होगा !” पटवारी के:
सहायक सटवारी ने तनिक रोब जमाते हुए कहा ।
“क्या पूछ-ताछ-- गोमती कुछ पूछे, उससे पहले ही माँ बोल पड़ी |
“यह तो उन्हीं से जाकर पूछो ना! कानून-कचरी की कोई बात
होगी । हमें क्या पता ?
गोमती कुछ सोचती हुई बोली, “कहाँ बुला रहे हैं छाटी ?”
“अपने डेरे में ।”
“प्रिमा को भी वहीं बन्द कर रखा हैँ क्या ?” बूढ़ी माँ ने पूछा ।
“हाँ, उसने तो कबूछ कर भी लिया है....।
“कया--ै
“कि छीसे के कण्टर चुराने में उसका भी हाथ था।
“तो फिर अव हमें बुलाकर क्या होगा ?” हताश स्वर में गोमती
ने कहा ।
“तुम्हारे बयान ठीक निकले तो कौन जाने छोड़ दें [”
“छोड़कर भी क्या होगा ? जब मन होगा, फिर बाँवकर ले जायेंगे ।
मुझे पता है कि पटवारी ज्यू उसे ही पकड़कर क्यों ले जाते हैं ? क्यों मुझे
बुला रहे हैं ?”
इतने में मल्ले घर से बुद्ध हरराम अपनी फटी हुई ऊनी टोपी ढीक
करते हुंए भा पहुँचे, “ठीक ही तो कहते हैं सटवारी ज्यू 1 तू जाकर देख
ले वहु ! सरकार-दरवार में नया होगा....।*
'हुं,” व्यंग्य से देखा गोमती ने, “नया ही दुनिया में होता तो आज
हमारी यह कुगत होती ? हमारे लिए कुछ भी नहीं....। मैं तो अब गजार-
देवता के थान में जाऊँगी । वहीं दो दाने अच्छत फ्रेंककर घात डालूगी।
कगार की आर १७
२
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