मध्यकालीन हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि | Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prishthabhumi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शस्कुत-राम-काम्य की परम्पत्ता र्श्‌ प्प्ट कहूले हैं कि पदि बहु सहायता के सिये मन से इच्ष्छुकू नहीं है तो बहू शिप्कि]मा पौट जाबे ।१ 'मानस' में ऐसी कोई बाठ महीं है । इस्त काम्प के राम सीता के अभिज्ञाम के छिए हतृमान्‌ को “मुद्िका' के मि रिक्त 'मणिमूपुर और 'स्तनोततरीय' भी देते हैं।' छाप ही बे दिसीप से लेकर रघू अग बोए इसरप तक अपना बश--बर्भन करते हुये भ्वणशाप', 'पूश्रप्टि यज्ञ! आदि बारम्प करके 'पीठा-हरण' हक की समस्त घटना मभौ उसको बतलाठे हैं ।९ इसके बठिरिक्त हनुमान्‌ की सुबिगा के लिये बे सीता के रूप बोर धुर्णों का परी विस्तृत बर्धन इरते हैं 7 'मामस' में केबस मुड्िका-दाम का ही उल्लेश है* तथा मम्य भारतों का कोई बर्भन सहीं किया मया है । इस ग्रम्ण के 'स्वयंप्रभा प्रसंग' में पर्वव-गुफा में प्रवेश करते ही अमंगद सर्बप्रयम दुर्शम तामक एक दासव का बध करता है। बहीं पर एक थधानरी हनुमात्‌ से दो वार प्रम प्रस्ताव करती है भौर तिरस्कृत होती है ।* बहाँ स्वर्य॑प्रभा-बृतास्त भी मति विस्युद भौर परम्परा पे भिन्त है।< मागस' में 'दुर्शम' भर बामरो' का कोई उससे गहं मिखता है तथा 'स्वयप्रमाऊपा' भौ अति स॑भ्िप्त है ।९ इस प्रस्प का प्रम्पाति अंयद जादि के समक्ष 'सीठा-हर॒ण का प्रत्यधा बर्णम करता हुला यह बतलाता है कि उसने सीता की रक्षा के लिए राबभ पर चोंच से प्रहर किमा बा हिल्तु बहु माग्यवस्‍्त बच कर मास यथा 11* इस सम्बन्भ में बह अपने पृष्ठ मुपारर्य के उ्योग का भी उल्सेस करठा है कि रुसने आधार की दशच्ष्छा से उस पमम रादइल को पकड़ भी सिसा वा परम्तु बह प्राण भिन्षा माँग कर अत्ता गया ।११ वहाँ बातरों को अपनी सेवायें मदित करता हुमा सम्पादि उनसे थह कहता है कि महू उसे सबको चोंच में पकड़ कर हांका में सीता से मिरा सकता है अपवा सीता को ही इस पार सा सकठा है 1१९ किस्तू ज॑ंपद इन दोर्ों विकल्पों को अनुचित समस्त कर १ रामचरित ५।४२-४४ है विससर्ज विभूपषर्ण चर हैम॑ सिजतामाझ कमतामिकानिनिप्टम्‌ ॥१९५॥ मजिनृपुरमुडराहिपुक्तरब छितम्सापिधनामकांछुरक्षम ॥।२७॥॥ अप्रिकामसुगग्षि साखसा्ईस्ततबविश्छितिकर्शकमुतरीयम 11९१॥। --शमबरित | आठ । १६-२१ है रामभचरित ५८४०-९१ ४ रामचरित ८पा७-१४ ॥ मानस ४४1२३ ६ रामचरित ११।४-१ १४ ० रामबरित १२४५ ८१ ८ रामबरित १३६॥२१-३१ है मानस ४1२४-२१ १० रामचरित १15३-८४ ११ रापचरित १४६० (२ मारोहत मामित रुमारास्तजादव सयामि ब क्षजेत ॥ १०३॥ जाय सु्मत्र आउट्मेक पर्यत्त्य क्षाणदाचरात्‌ क्षणेत | शब्रादाप बबसूपमि युध्मास्वासृष्यं यदि मे मदत्यमेद 11१०४) -रामचरित १४।१०३-१०४




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